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अ॒भि गव्या॑नि वी॒तये॑ नृ॒म्णा पु॑ना॒नो अ॑र्षसि । स॒नद्वा॑ज॒: परि॑ स्रव ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi gavyāni vītaye nṛmṇā punāno arṣasi | sanadvājaḥ pari srava ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि । गव्या॑नि । वी॒तये॑ । नृ॒म्णा । पु॒ना॒नः । अ॒र्ष॒सि॒ । स॒नत्ऽवा॑जः । परि॑ । स्र॒व॒ ॥ ९.६२.२३

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:62» मन्त्र:23 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:28» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:23


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्वामिन् ! (वीतये) उपभोग के लिये (गव्यानि नृम्णा) गोसम्बन्धी धनों को (अभि पुनानः) निर्विघ्न करते हुए (अर्षसि) आप गमन करते हैं (सनद्वाजः) सब शक्तियों को सर्वत्र विभक्त करते हुए आप (परिस्रव) सर्वत्र व्यापक होवें ॥२३॥
भावार्थभाषाः - जो सेनापति पृथिव्यादि रत्नों को निर्विघ्न करने के लिये अपनी जीवनयात्रा करते हैं, वे सेनाधीशादि पदों के लिये उपयुक्त होते हैं ॥२३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सनद्वाजः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे सोम ! तू (पुनानः) = हमारे जीवनों को पवित्र करता हुआ (वीतये) = [वी असने ] अज्ञानान्धकार के ध्वंस के लिये (गव्यानि) = [ गावः इन्द्रियाणि] इन ज्ञानेन्द्रियों सम्बन्धी (नृम्णा) = धनों को (अभि अर्षसि) = हमें प्राप्त कराता है । सोमरक्षण से सब इन्द्रियाँ सशक्त होकर अपने-अपने कार्य को सुन्दरता से करती हैं। उससे ज्ञानवृद्धि होकर हमारा अज्ञानान्धकार विनष्ट होता है । [२] (सनद्वाजः) = दी है शक्ति जिसने ऐसा यह सोम है । इसी से सब इन्द्रियों को अंगों को बल प्राप्त होता है । हे सोम ! तू (परिस्रव) = हमारे शरीर में चारों ओर प्रवाहित होनेवाला हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम ज्ञानेन्द्रियों के धन को प्राप्त कराता है और कर्मेन्द्रियों को सशक्त बनाता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे विभो ! (वीतये) उपभोगाय (गव्यानि नृम्णा) गोधनानि (अभिपुनानः) निर्विघ्नानि कुर्वन् (अर्षसि) भवान् गमनं करोति (सनद्वाजः) सर्वासां शक्तीनां विभागं कुर्वन् (परिस्रव) भवान् सर्वत्र व्यापको भवतु ॥२३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, exciting peace, pleasure and excellence of the human nation, you move forward, pure, purifying and glorified, to achieve the wealth of lands and cows, culture and literature, and the jewels of human excellence for lasting peace and well being. Go on ever forward, creating, winning and giving food and fulfilment for the body, mind and soul of the collective personality.