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अ॒भि त्यं पू॒र्व्यं मदं॑ सुवा॒नो अ॑र्ष प॒वित्र॒ आ । अ॒भि वाज॑मु॒त श्रव॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi tyam pūrvyam madaṁ suvāno arṣa pavitra ā | abhi vājam uta śravaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि । त्यम् । पू॒र्व्यम् । मद॑म् । सु॒वा॒नः । अ॒र्ष॒ । प॒वित्रे॑ । आ । अ॒भि । वाज॑म् । उ॒त । श्रवः॑ ॥ ९.६.३

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:6» मन्त्र:3 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:26» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पवित्र) हे सबको पावन करनेवाले परमात्मन् ! आप (त्यम्, पूर्व्यम्, मदम्) उस नित्यानन्द को (सुवानः) प्रदान करनेवाले हैं, जिससे मनुष्य सदैव के लिये आनन्दलाभ करता है, इसलिये आप (अभिवाजम्) सब प्रकार का बल (उत) और (श्रवः) ऐश्वर्य हमको (अर्ष) प्रदान करें ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वाज-श्रवस् [शक्ति - ज्ञान]

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे सोम ! (सुवानः) = शरीर में उत्पन्न किया जाता हुआ तू (पवित्रे) = मेरे हृदय के पवित्र होने पर (त्यम्) = उस (पूर्व्यम्) = पालन व पूरण करने में उत्तम (मदम्) = उल्लासजनक रस को (अभि आ अर्ष) = सर्वथा प्राप्त करा । [२] इस मदकर रस के द्वारा (वाजम्) = शक्ति को (अभि) = [अर्ष] प्राप्त करा (उत) = और (श्रवः) = ज्ञान को प्राप्त करा । सोम के रक्षण से शक्ति व ज्ञान प्राप्त होते हैं । रक्षित सोम से शरीर शक्तिशाली बनता है और मस्तिष्क ज्ञान से दीप्त होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-रक्षित सोम हमें वह मदकर रस प्राप्त कराये जिससे शक्ति व ज्ञान का वर्धन हो ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - भवान् (त्यम्, पूर्व्यम्, मदम्) तं नित्यानन्दम् (सुवानः) उत्पादयति येन जनः शश्वत्प्रीयते अतो भवान् (अभिवाजम्) सर्वविधबलं (उत) तथा (श्रवः) कीर्तिं (अर्ष) मह्यं प्रयच्छ ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O spirit of power and purity, you are the creator and giver of eternal passion for life, its honour and excellence. Pray inspire us with passion which leads us to victory, honour and fame.