त्वं सो॑म॒ पव॑मानो॒ विश्वा॑नि दुरि॒ता त॑र । क॒विः सी॑द॒ नि ब॒र्हिषि॑ ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
tvaṁ soma pavamāno viśvāni duritā tara | kaviḥ sīda ni barhiṣi ||
पद पाठ
त्वम् । सो॒म॒ । पव॑मानः । विश्वा॑नि । दुः॒ऽइ॒ता । त॒र॒ । क॒विः । सी॒द॒ । नि । ब॒र्हिषि॑ ॥ ९.५९.३
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:59» मन्त्र:3
| अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:16» मन्त्र:3
| मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:3
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे भगवन् ! (त्वम्) आप (विश्वानि दुरिता तर) सम्पूर्ण पापों को दूर कीजिये (कविः) सर्वकर्माभिज्ञ आप (बर्हिषि) यज्ञस्थलों में (निषीद) विराजमान होवें ॥३॥
भावार्थभाषाः - मलिन वासनाओं के क्षय के लिये परमात्मा से सदैव प्रार्थना करनी चाहिये ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
दुरित-तरण
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! (त्वम्) = तू (पवमानः) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाला है । (विश्वानि दुरिता) = सब बुराइयों को तू (तर) = तैर जा । सोमरक्षण से सब शरीरस्थ न्यूनतायें दूर हो जाती हैं । [२] (कविः) = क्रान्तकर्मा व क्रान्तप्रज्ञ यह सोम (बर्हिषि) = वासनाशून्य हृदय में (न सीद) = निषण्ण हो । हृदय के वासनाशून्य होने पर ही सोम शरीर में सुरक्षित रहता है । रक्षित होने पर यह [क] हमें पवित्र बनाता है, [ख] सब दुरितों को दूर करता है, [ग] हमारी बुद्धियों को सूक्ष्म बनाता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम 'पवित्रता, भद्रता व बुद्धि' को प्राप्त कराता है।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे भगवन् (त्वम्) भवान् (विश्वानि दुरिता तर) समस्तपापान् दूरीकरोतु (कविः) सम्पूर्णकर्माभिज्ञो भवान् (बर्हिषि) यज्ञस्थलेषु (निषीद) विराजताम् ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, pure and purifying energy and divine inspiration, cross over hurdles, eliminate evil tendencies and, O omniscient vision and creativity, be seated on the holy vedi and in the mind.
