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तर॒त्स म॒न्दी धा॑वति॒ धारा॑ सु॒तस्यान्ध॑सः । तर॒त्स म॒न्दी धा॑वति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tarat sa mandī dhāvati dhārā sutasyāndhasaḥ | tarat sa mandī dhāvati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तर॑त् । सः । म॒न्दी । धा॒व॒ति॒ । धारा॑ । सु॒तस्य॑ । अन्ध॑सः । तर॑त् । सः । म॒न्दी । धा॒व॒ति॒ ॥ ९.५८.१

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:58» मन्त्र:1 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:15» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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आर्यमुनि

अब परमात्मा का सर्वव्यापक होना वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (मन्दी सः) परम आनन्दमय यह परमात्मा (तरत्) पापियों को तारता हुआ (सुतस्य अन्धसः धारा) उत्पन्न किये हुए ब्रह्मानन्द के रससहित (धावति) स्तोताओं के हृदय में विराजमान होता है। (तरत् स मन्दी धावति) और वह परमात्मा निश्चय सब पापियों को तारता हुआ परमानन्दरूप से संसार में व्याप्त हो रहा है ॥१॥
भावार्थभाषाः - पापियों को तारने का अभिप्राय यह है कि जो लोग पाप का प्रायश्चित्त करके उसकी शरण को प्राप्त होते हैं, वे फिर कदापि पाप से पीड़ित नहीं होते। अथवा यों कहो कि पापमय संचित कर्मों की स्थिति उनके हृदय से दूर हो जाती है। अन्य पापों को ईश्वर कदापि क्षमा नहीं करता ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

तरत् स मन्दी धावति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सुतस्य) = शरीर में उत्पन्न हुए हुए (अन्धसः) = इस अत्यन्त ध्यान देने योग्य [आध्यायनीयं भवति नि० ५ । २ । अन्धसस्पत इति सोमस्य पते इत्येतत् श० ९ । १ । २ । ४] सोम की (धारा) = धारण शक्ति के द्वारा (तरत्) = सब रोगों व वासनाओं को तैरता हुआ (सः) = वह (मन्दी) = [To shine ] ज्ञान- ज्योति से चमकनेवाला पुरुष (धावति) = यज्ञादि उत्तम कर्मों में गतिवाला होता है । एवं सोमरक्षण से [क] वह नीरोग व निर्मल मनवाला बनता है, [ख] ज्ञान से दीप्त होता है और [ग] यज्ञादि कर्मों में प्रवृत्त होता है। [२] (तरत्) = वासनाओं व रोगों से तैरता हुआ (सः) = वह सोम के महत्त्व को समझनेवाला पुरुष (मन्दी) - [To praise] प्रभु का उपासक बनता है। प्रभु का उपासक बनकर (धावति) = अपने जीवन को शुद्ध करता है। प्रभु की उपासना उसे वासनाओं का शिकार नहीं होने देती। वासनाओं से आक्रान्त न होने से वह सोमरक्षण कर पाता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण करनेवाला पुरुष [क] रोगों से पार हो जाता है, [ख] ज्ञानदीप्ति से चमक उठता है, [ग] यज्ञादि क्रियाओं में लगा हुआ अपने जीवन को शुद्ध बना पाता है ।
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आर्यमुनि

अथ परमात्मनो विभुत्वं वर्ण्यते |

पदार्थान्वयभाषाः - (मन्दी सः) उत्कृष्टानन्दयुक्तः स परमात्मा (तरत्) पापिनस्तारयन् (सुतस्य अन्धसः धारा) उत्पन्नेन ब्रह्मानन्दरसेन सह (धावति) स्तोतॄणां हृदि विराजमानो भवति | (तरत् सः मन्दी धावति) अथ च स परमात्मा निश्चयेन समस्तपापकारिणस्तारयन् परमानन्दरूपेण व्याप्तो भवति ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma, Spirit of peace, beauty and bliss, saving, rejoicing, fulfilling, flows on. The stream of delight exhilarating for body, mind and soul flows on full of bliss. Crossing over the hurdles of life, delighted all over, the celebrant goes on.