अ॒यं सूर्य॑ इवोप॒दृग॒यं सरां॑सि धावति । स॒प्त प्र॒वत॒ आ दिव॑म् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
ayaṁ sūrya ivopadṛg ayaṁ sarāṁsi dhāvati | sapta pravata ā divam ||
पद पाठ
अ॒यम् । सूर्यः॑ऽइव । उ॒प॒ऽदृक् । अ॒यम् । सरां॑सि । धा॒व॒ति॒ । स॒प्त । प्र॒ऽवतः॑ । आ । दिव॑म् ॥ ९.५४.२
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:54» मन्त्र:2
| अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:11» मन्त्र:2
| मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:2
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह परमात्मा (सूर्यः इव उपदृग्) सूर्य के समान सबके कर्मों का द्रष्टा है और (अयं सरांसि धावति) यह परमात्मा ज्ञान द्वारा सर्वत्र व्याप्त है (सप्त प्रवतः आदिवम्) जो यह परमात्मा सात किरणवाले सूर्य को अपने भीतर लेकर और द्युलोक को भी एकदेशी बनाकर स्थिर हो रहा है ॥२॥
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार अन्य ग्रह-उपग्रहों को अपेक्षा से सूर्य स्वयंप्रकाश है, इसी प्रकार सूर्य आदिकों की अपेक्षा से परमात्मा स्वयंप्रकाश है। उस स्वयंप्रकाश स्वयंज्योति की उपासना करके सबको पवित्र बनने का यत्न करना चाहिए ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
सूर्य के समान
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अयम्) = गत मन्त्र के अनुसार सोमरक्षण के द्वारा वेदवाणी रूप गौ से ज्ञानदुग्ध का दोहन करनेवाला यह पुरुष (सूर्य इव) = सूर्य की तरह (उपदृग्) = दिखनेवाला होता है। यह लगभग सूर्य जैसा लगता है। सूर्यसम तेजस्वी होता है । [२] (अयम्) = यह सोमरक्षक (सरांसि) = अपने ज्ञान सरोवरों को (धावति) = शुद्ध कर लेता है [धाव शुद्धौ]। सोम के द्वारा ज्ञानाग्नि दीप्त हो उठती है। ज्ञान का शोधन करता हुआ यह (सप्त) = सात (प्रवतः) = [ height, elevation] ऊँचाइयों को, उच्च लोकों को (धावति) = जाता है, उन लोकों में आगे-आगे बढ़ता चलता है। और आ दिवम् उस प्रकाशस्वरूप परमात्मा तक पहुँचता है। ये सात लोक 'भूः भुवः, स्व:, मह:, जनः, तपः, सत्यम्' इन सात व्याहियों द्वारा सूचित हो रहे हैं। इन लोकों का आक्रमण करता हुआ यह सोमी सूर्य सम तेजस्वी प्रतीत होता है । भावार्थ - यह सोम रक्षक पुरुष सूर्य के समान तेजस्वी होता है, यह ज्ञानसरोवरों को शुद्ध कर डालता है, 'भू' आदि लोकों का विजय करता हुआ प्रभु को प्राप्त करता है ।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) असौ परमात्मा (सूर्यः इव उपदृग्) सूर्य इव सर्वकर्मद्रष्टास्ति। यथा सूर्यः सर्वकर्मावलोकनसमर्थ- स्तथासावपीत्यर्थः। अथ च (अयं सरांसि धावति) अयं परमेश्वरः अधिकाधिकज्ञानेन सर्वत्र व्याप्तोऽस्ति। (सप्त प्रवतः आदिवम्) यः परमात्मा सप्तकिरणवन्तं सूर्यमात्मनि कृत्वा तथा द्युलोकमप्येकदेशिनं विधाय स्थिरो वर्तते ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - This Soma, like the sun, all watching and illuminating, sets rivers, seas and energies aflow, pervading therein on earth and in the seven-fold light of the sun upto the regions of light.
