त्वं हि सो॑म व॒र्धय॑न्त्सु॒तो मदा॑य॒ भूर्ण॑ये । वृष॑न्त्स्तो॒तार॑मू॒तये॑ ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
tvaṁ hi soma vardhayan suto madāya bhūrṇaye | vṛṣan stotāram ūtaye ||
पद पाठ
त्वम् । हि । सो॒म॒ । व॒र्धय॑न् । सु॒तः । मदा॑य । भूर्ण॑ये । वृष॑न् । स्तो॒तार॑म् । ऊ॒तये॑ ॥ ९.५१.४
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:51» मन्त्र:4
| अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:8» मन्त्र:4
| मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:4
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! (त्वं हि) आप जब (सुतः) विद्वानों द्वारा साक्षात्कार किये जाते हैं, तो (मदाय) आनन्द के लिये और (भूर्णये) दक्षता के लिये तथा (ऊतये) रक्षा के लिये (स्तोतारम्) उपासक को (वर्धयन्) समृद्ध बनाते हुए (वृषन्) सब कामनाओं को पूर्ण करते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - सर्वोपरि नीति और व्यवहारकुशलता की नीति एकमात्र परमात्मा द्वारा उपदिष्ट वेदों से ही मिल सकती है, अन्यत्र नहीं ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
मदाय-भूर्णये-ऊतये
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते! (त्वम्) = तू (हि) = निश्चय से (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ (वर्धयन्) = सब शक्तियों का वर्धन करता हुआ (मदाय) = हर्ष के लिये होता है, (भूर्णये) = भरण के लिये होता है अथवा [भूर्णि = क्षिप्रम्] शीघ्रता से कार्यों को करने के लिये होता है। [२] हे सोम ! (स्तोतारम्) = उपासक को (वृषन्) = सब सुखों से सिक्त करता हुआ तू (ऊतये) = रक्षण के लिये होता है । सोम शरीर में सुरक्षित होने पर आधिव्याधियों को विनष्ट करनेवाला होता है। प्रभु की उपासना के होने पर यह शरीर में सुरक्षित रहता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम उल्लास के लिये, शीघ्रता से कार्यों को करने के लिये तथा रक्षण के लिये होता है।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! (त्वं हि) त्वं यदा (सुतः) विद्वद्भिः साक्षात्कृतो भवसि तदा (मदाय) आनन्दाय (भूर्णये) दाक्ष्याय (ऊतये) रक्षायै च (स्तोतारम्) उपासकं (वर्धयन्) समृद्धयन् (वृषन्) सर्वान् कामान् पूरयसि ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - Soma, lord of purity, peace and power, you alone are the object of meditation, supplication and exaltation for the ecstasy, vibrancy and protected progress of life, you alone promote the celebrant to the top of sovereignty and give him showers of joy.
