ई॒ळेन्य॒: पव॑मानो र॒यिर्वि रा॑जति द्यु॒मान् । मधो॒र्धारा॑भि॒रोज॑सा ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
īḻenyaḥ pavamāno rayir vi rājati dyumān | madhor dhārābhir ojasā ||
पद पाठ
ई॒ळेन्यः॑ । पव॑मानः । र॒यिः । वि । रा॒ज॒ति॒ । द्यु॒ऽमान् । मधोः॑ । धारा॑भिः । ओज॑सा ॥ ९.५.३
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:5» मन्त्र:3
| अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:24» मन्त्र:3
| मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:3
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (ईळेन्यः) उपासनीय परमात्मा (पवमानः) जो शुद्धस्वरूप है (रयिः) “राति सुखमिति रयिः=जो सब प्रकार के सुखों को देनेवाला है” वह (मधोर्धाराभिः) आनन्द की वृष्टि से तथा (ओजसा) प्रभावशाली प्रताप से (विराजति) विराजमान है और वह परमात्मा (द्युमान्) प्रकाशस्वरूप है ॥३॥
भावार्थभाषाः - उपासक को चाहिये कि वह उपास्यदेव की उपासना करे, जो स्वप्रकाश और सबको पवित्र करनेवाला तथा आनन्द की वृष्टि से सबको आनन्दित करता है, वही धारणा-ध्यानादि योगज वृत्तियों से साक्षात् करने योग्य है ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
'ईडेन्य' सोम
पदार्थान्वयभाषाः - [१] यह सोम (ईडेन्यः) = स्तुति में उत्तम है । सोमरक्षण के होने पर हमारी वृत्ति प्रभु-स्तवन की बनती है (पवमानः) = यह हमारे हृदयों को पवित्र करता है। यह हमारे लिये (द्युमान् रयिः) = ज्ञान- ज्योतिवाला धन है । [२] यह हमारे अन्दर (मधोः धाराभिः) = मधु की धाराओं से, अर्थात् अत्यन्त माधुर्य से तथा (ओजसा) = ओज [शक्ति] से विराजति दीप्त होता है। हमारे जीवन को मधुर व ओजस्वी बनाता हुआ यह शोभायमान होता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण से हम 'प्रभु-स्तवन की वृत्तिवाले, पवित्र, ज्ञान धनवाले, मधुर व ओजस्वी' बनते हैं ।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (ईळेन्यः) उपासनीयः परमात्मा (पवमानः) शुद्धरूपः (रयिः) सर्वविधसुखप्रदः (मधोर्धाराभिः) आनन्दवृष्टिभिः तथा (ओजसा) प्रतापेन च (विराजति) उत्कर्षं प्राप्नोति स च (द्युमान्) ज्योतिःस्वरूपोऽस्ति ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - Adorable, immaculate and beatifying lord of light shines by his own lustre with honey sweet showers of beauty and joy on earth.
