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घृ॒तं प॑वस्व॒ धार॑या य॒ज्ञेषु॑ देव॒वीत॑मः । अ॒स्मभ्य॑य वृ॒ष्टिमा प॑व ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ghṛtam pavasva dhārayā yajñeṣu devavītamaḥ | asmabhyaṁ vṛṣṭim ā pava ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

घृ॒तम् । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । य॒ज्ञेषु॑ । दे॒व॒ऽवीत॑मः । अ॒स्मभ्य॑म् । वृ॒ष्टिम् । आ । प॒व॒ ॥ ९.४९.३

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:49» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:6» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मनन् ! आप (यज्ञेषु) यज्ञों में (देववीतमः) देवताओं के अत्यन्त तृप्तिकारक हैं (धारया घृतं पवस्व) आप अपनी ज्ञानधारा से हमारे हृदय में स्नेह को उत्पन्न करिये और (अस्मभ्यम् वृष्टिमापवस्व) हमारे लिये सब कामनाओं की वर्षा करिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो लोग ज्ञानयज्ञ या कर्म में तत्पर होकर परमात्मा का यजन करते हैं, परमात्मा उनको सर्वेश्वर्यसम्पन्न बनाता है ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

आनन्द की वृष्टि

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे सोम ! तू (धारया) = अपनी धारणशक्ति से (घृतं पवस्व) = मलों के क्षरण व ज्ञानदीप्ति को (पवस्व) = प्राप्त करा । तू (यज्ञेषु) = उत्तम कर्मों के होने पर (देववीतमः) = अधिक से अधिक दिव्य गुणों को प्राप्त करानेवाला हो। [२] (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (वृष्टिम्) = आनन्द की वर्षा को (आपव) = सर्वथा प्राप्त करा । सोमरक्षण से ही योग में प्रगति होकर हम धर्ममेघ समाधि तक पहुँचते हैं और आनन्द की वर्षा को प्राप्त करते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण से [क] मल नष्ट होते हैं, [ख] ज्ञानदीप्त होता है, [ग] दिव्य गुणों का वर्धन होता है, [घ] हम यज्ञात्मक कर्मों में प्रवृत्त होते हैं, [ङ] समाधि में आनन्द की वर्षा का अनुभव होता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे करुणानिधान जगद्रक्षकपरमात्मन् ! त्वं (यज्ञेषु) सत्रेषु (देववीतमः) देवानामतितृप्तिकारकोऽसि। (धारया घृतं पवस्व) त्वं स्वज्ञानधारया मद्हृदये स्नेहमुत्पादय। तथा (अस्मभ्यम् वृष्टिमापवस्व) अस्माकं सर्वमभीष्टं वर्षय ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Let ghrta shower in streams, pure and powerful in our yajnas, O lord and guardian of the noble and divine worshippers. Bring us fulfilment and purify all our intentions, purposes and motivations of life.