अधा॑ हिन्वा॒न इ॑न्द्रि॒यं ज्यायो॑ महि॒त्वमा॑नशे । अ॒भि॒ष्टि॒कृद्विच॑र्षणिः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
adhā hinvāna indriyaṁ jyāyo mahitvam ānaśe | abhiṣṭikṛd vicarṣaṇiḥ ||
पद पाठ
अध॑ । हि॒न्वा॒नः । इ॒न्द्रि॒यम् । ज्यायः॑ । म॒हि॒ऽत्वम् । आ॒न॒शे॒ । अ॒भि॒ष्टि॒ऽकृत् । विऽच॑र्षणिः ॥ ९.४८.५
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:48» मन्त्र:5
| अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:5» मन्त्र:5
| मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:5
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (अधा) आप (इन्द्रियं हिन्वानः) इन्द्रिय के प्रेरक हैं (ज्यायः) सर्वोपरि विराजमान होने से (महित्वमानशे) अपनी महिमा से सर्वत्र व्याप्त हो रहे हैं (अभिष्टिकृत्) तथा अपने भक्तों के लिये कामनाओं के प्रदाता हैं (विचर्षणिः) सबके कर्मों के द्रष्टा हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - जीवों के अन्दर अन्तर्यामी रूप से व्याप्त एकमात्र परमात्मा ही है, कोई अन्य देव नहीं ॥५॥ यह ४८ वाँ सूक्त और ५ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
'उत्कृष्ट महिमा' वाला सोम
पदार्थान्वयभाषाः - [१] यह सोम (अधा) = अब, गत मन्त्र अनुसार गतिशीलता व त्यागशीलता से शरीर में सुरक्षित हुआ - हुआ (इन्द्रियम्) = बल व वीर्य को (हिन्वानः) = प्रेरित करता हुआ (ज्यायः महित्वम्) = उत्कृष्ट महिमा को (आनशे) = व्याप्त करता है, सोम के रक्षण से हमारा बल व वीर्य बढ़ता है और हमें उत्कृष्ट महिमा प्राप्त होती है। [२] यह सोम (अभिष्टिकृद्) = हमारी सब वासनाओं व व्याधियों पर आक्रमण करनेवाला है। यह (विचर्षणिः) = हमारा विशेषरूप से ध्यान करनेवाला है। यह हमें सब प्रकार से सुरक्षित करता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम [क] हमारे अन्दर शक्ति को प्राप्त कराता है, [ख] हमें महत्त्वपूर्ण जीवनवाला बनाता है, [ग] हमारे शत्रुओं पर आक्रमण करता है, [घ] हमारा विशेषरूप से ध्यान करता है। अगला सूक्त भी इस कवि भार्गव का ही है-
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (अधा) भवान् (इन्द्रियं हिन्वानः) इन्द्रियप्रेरकोऽस्ति (ज्यायः) सर्वोपरि स्थिततया (महित्वमानशे) स्वतेजसा सर्वत्र व्याप्तो भवसि त्वम्। (अभिष्टिकृत्) तथा स्वभक्तेभ्योऽभीष्टदाताऽसि। (विचर्षणिः) अथ च सर्वेषां कर्मणां प्रेक्षकोऽसि ॥५॥ इति अष्टचत्वारिंशत्तमं सूक्तं पञ्चमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - And so, the inspirer of the power of senses, mind and intelligence, giver of fulfilment to the devotees, all watching Soma, divine Spirit of peace, power and enlightenment, pervades and abides in and over existence as the supreme power of divine glory.
