यो अत्य॑ इव मृ॒ज्यते॒ गोभि॒र्मदा॑य हर्य॒तः । तं गी॒र्भिर्वा॑सयामसि ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
yo atya iva mṛjyate gobhir madāya haryataḥ | taṁ gīrbhir vāsayāmasi ||
पद पाठ
यः । अत्यः॑ऽइव । मृ॒ज्यते॑ । गोभिः॑ । मदा॑य । ह॒र्य॒तः । तम् । गीः॒ऽभिः । वा॒स॒या॒म॒सि॒ ॥ ९.४३.१
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:43» मन्त्र:1
| अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:33» मन्त्र:1
| मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:1
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आर्यमुनि
अब परमात्मा का दातृत्व वर्णन करते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (हर्यतः यः) सर्वोपरि कमनीय जो परमात्मा (अत्यः इव) विद्युत् के समान दुर्ग्राह्य है (गोभिः मदाय मृज्यते) और जो परमात्मा ब्रह्मानन्दप्राप्ति के लिये इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष किया जाता है (तम्) उस परमात्मा को (गीर्भिः) अपनी स्तुतियों द्वारा (वासयामसि) हृदयाधिष्ठित करते हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो लोग परमात्मा की प्रार्थना उपासना और स्तुति करते हैं, वे अवश्यमेव परमात्मा के स्वरूप को अनुभव करते हैं ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
गोभिः गीर्भिः
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (यः) = जो सोम (अत्यः इव) = सततगामी अश्व के समान है, अर्थात् यह हमें शक्ति सम्पन्न बनाकर खूब ही गतिमय करता है। यह सोम (गोभिः) = ज्ञान की वाणियों से (मृज्यते) = शुद्ध किया जाता है। यदि हम स्वाध्याय में लगते हैं तो वासनाओं से आक्रान्त न होने से यह सोम शुद्ध बना रहता है। यह (मदाय) = आनन्द व उल्लास के लिये होता है। (हर्यतः) = गतिशील व कान्त होता है । हमें गतिशील बनाता है, चाहने योग्य होता है । [२] (तम्) = उस सोम को (गीर्भिः) = स्तुति-वाणियों के द्वारा वासयामसि अपने अन्दर धारण करते हैं। प्रभु-स्तवन करते हैं और प्रभु-स्तवन द्वारा सोम का रक्षण कर पाते हैं। यह प्रभु स्मरण हमें वासनाओं से बचाता है, और इस प्रकार सोम को हमारे में बसाता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - स्वाध्याय [गोभिः व स्तुति [गीर्भिः]] सोमरक्षण के साधन हैं।
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आर्यमुनि
अथ परमात्मनो दातृत्वं वर्ण्यते।
पदार्थान्वयभाषाः - (हर्यतः यः) अतिकमनीयो यः परमात्मा (अत्यः इव) विद्युदिव दुर्ग्राह्यः (गोभिः मदाय मृज्यते) यश्च ब्रह्मानन्दप्राप्तय इन्द्रियैः साक्षात्क्रियते (तम्) तं परमात्मानं (गीर्भिः) स्तुतिभिः (वासयामसि) हृदयाधिष्ठितं कुर्मः ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - The Soma which is radiant and pure like virgin energy of nature and most blissful in experience is realised for spiritual joy through the senses, mind and intelligence.
