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अ॒भि विश्वा॑नि॒ वार्या॒भि दे॒वाँ ऋ॑ता॒वृध॑: । सोम॑: पुना॒नो अ॑र्षति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi viśvāni vāryābhi devām̐ ṛtāvṛdhaḥ | somaḥ punāno arṣati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि । विश्वा॑नि । वार्या॑ । अ॒भि । दे॒वान् । ऋ॒त॒ऽवृधः॑ । सोमः॑ । पु॒ना॒नः । अ॒र्ष॒ति॒ ॥ ९.४२.५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:42» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:32» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमः) सर्वोत्पादकः परमात्मा (ऋतावृधः देवान्) सत्य को बढ़ानेवाले सत्कर्मियों को (अभि पुनानः) सर्वथा पवित्र करके (वार्या विश्वानि) सम्पूर्ण वाञ्छनीय पदार्थों को (अभ्यर्षति) उनके लिये प्राप्त करता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - यद्यपि परमात्मा दयामय और सर्वहितकारी है, तथापि उद्योगी पुरुषों को पवित्र करता हुआ अभ्युदयरूप फल देता है, अनुद्योगियों को नहीं ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वार्य देव ऋत

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (पुनानः) = हमारे जीवनों को पवित्र करता हुआ (सोमः) = सोम [वीर्य] (विश्वानि) = सब (वार्या) = वरणीय वस्तुओं के (अभि) = ओर (अर्षति) = गतिवाला होता है । यह हमें सब चाहने योग्य चीजों को प्राप्त कराता है। इसी से जीवन में किसी प्रकार की कमी नहीं रहती । [२] यह सोम (ऋतावृधः) = ऋत का, सत्य का व यज्ञ का वर्धन करनेवाले (देवान्) = दिव्य गुणों की (अभि) = ओर गतिवाला होता है । सोमरक्षण से हम ऋत का पालन करते हैं और हमारे जीवनों में दिव्य गुणों का विकास होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम सुरक्षित होने पर हमारे जीवनों में सब वरणीय वस्तुओं को, दिव्य गुणों को तथा ऋत को बढ़ाता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमः) सर्वोत्पादकः परमात्मा (ऋतावृधः देवान्) सत्यस्य वर्धयितॄन् सत्कर्मिणः (अभि पुनानः) सर्वथा पवित्रयन् (वार्या विश्वानि) सम्पूर्णान् स्पृहणीयपदार्थान् (अभ्यर्षति) तान् प्रापयति ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma, purifying the heart and soul of humanity, creates and brings up all the choice wealth, honours and excellences of the world for the noble and generous brilliancies of humanity dedicated in service to the laws and values of truth and rectitude in life.