ए॒ष प्र॒त्नेन॒ मन्म॑ना दे॒वो दे॒वेभ्य॒स्परि॑ । धार॑या पवते सु॒तः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
eṣa pratnena manmanā devo devebhyas pari | dhārayā pavate sutaḥ ||
पद पाठ
ए॒षः । प्र॒त्नेन॑ । मन्म॑ना । दे॒वः । दे॒वेभ्यः॑ । परि॑ । धार॑या । प॒व॒ते॒ । सु॒तः ॥ ९.४२.२
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:42» मन्त्र:2
| अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:32» मन्त्र:2
| मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:2
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (प्रत्नेन मन्मना) प्राचीन वेदरूप स्तोत्र से (देवः) प्रकाशमान (एषः सुतः) यह स्वयंसिद्ध परमात्मा (देवेभ्यः) दिव्यगुणसम्पन्न विद्वानों को (धारया) आनन्द की धारा से (परि पवते) भली प्रकार आह्लादित करता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा अपने वैदिक ज्ञान से सब लोगों को ज्ञानी-विज्ञानी बनाकर आनन्दित करता है ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
दिव्यवृत्ति की प्राप्ति
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (एषः) = यह (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ सोम (देवः) = प्रकाशमय है, यह हमारे जीवन को प्रकाशमय बनाता है। यह (प्रत्नेन मन्मना) = उस सनातन [अनादि सिद्ध] ज्ञान के साथ हमें प्राप्त होता है । सोमरक्षण से ही बुद्धि की दीप्तता को प्राप्त करके इस वेदज्ञान को प्राप्त करने का सम्भव होता है । [२] यह सोम (देवेभ्यः) = देववृत्तिवाले व्यक्तियों के लिये (धारया) = धारणशक्ति के साथ (परिपवते) = शरीर में चारों ओर गति करता है, वस्तुतः इसके शरीर में व्याप्त होने से ही हमारी वृत्ति दिव्य बनती है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित हुआ हुआ सोम हमें दिव्यवृत्तिवाला बनाता है ।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (प्रत्नेन मन्मना) प्राक्तनया वेदमयस्तुत्या (देवः) प्रकाशमानः (एषः सुतः) अयं स्वयंसिद्धः परमात्मा (देवेभ्यः) दिव्यगुणसम्पन्नान् विदुषः (धारया) आनन्दस्रोतसा (परि पवते) सुष्ठु आह्लादयति ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - This divine Soma, light and life of the world, self-realised by the sages and adored with ancient and eternal hymns of the Veda, vibrates for them in the heart and soul and sanctifies them with showers of heavenly bliss.
