स प॑वस्व विचर्षण॒ आ म॒ही रोद॑सी पृण । उ॒षाः सूर्यो॒ न र॒श्मिभि॑: ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
sa pavasva vicarṣaṇa ā mahī rodasī pṛṇa | uṣāḥ sūryo na raśmibhiḥ ||
पद पाठ
सः । प॒व॒स्व॒ । वि॒ऽच॒र्ष॒णे॒ । आ । मा॒ही इति॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । पृ॒ण॒ । उ॒षाः । शूर्यः॑ । न । र॒श्मिऽभिः॑ ॥ ९.४१.५
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:41» मन्त्र:5
| अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:31» मन्त्र:5
| मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:5
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (विचर्षण) हे सर्वद्रष्टा परमात्मन् ! (उषाः सूर्यः न रश्मिभिः) जिस प्रकार सूर्य अपनी किरणों से उषःकाल को प्रकाशित कर देता है, उसी प्रकार (मही रोदसी) इस महान् पृथिवीलोक और द्युलोक को (आपृण) अपने ऐश्वर्य से पूरित करिये और (पवस्व) उस ऐश्वर्य से अपने सत्कर्मी उपासकों को पवित्र करिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा ही एकमात्र पवित्रता का केन्द्र है। पवित्रता चाहनेवालों को चाहिये कि पवित्र होने के लिये उसी परमात्मा की उपासना करके अपने आपको पवित्र बनायें ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
द्यावापृथिवी का आपूरण
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (विचर्षणे) = विशेषरूप से हमारा ध्यान करनेवाले [ look after ] सोम ! (सः) = वह तू (पवस्व) = हमें प्राप्त हो, हमें पवित्र करनेवाला हो। तू (मही रोदसी) = महत्त्वपूर्ण द्यावापृथिवी का (आपण) = [आ पूरय] पूरण करनेवाला हो । मस्तिष्क को ज्ञानदीप्ति से भरनेवाला हो तथा शरीर को तू शक्ति से परिपूर्ण कर । [२] इन द्यावापृथिवी को, मस्तिष्क व शरीर को तू इस प्रकार ज्ञान व शक्ति से भरनेवाला हो न जैसे कि (सूर्य:) = सूर्य (रश्मिभिः) = किरणों से (उषा:) = उषा से उपलक्षित दिनों को भर देता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम हमारे मस्तिष्क को ज्ञान से भरता है और शरीर को शक्ति से ।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (विचर्षण) हे सर्वद्रष्टः परमात्मन् ! (उषाः सूर्यः न रश्मिभिः) स्वतेजोभिः उषःकालस्य प्रकाशयिता सूर्य इव (मही रोदसी) महत्यौ द्यावापृथिव्यौ (आपृण) स्वप्रभुत्वेन प्रकाश्य पूरय (पवस्व) स्वान्सत्कर्मिण उपासकांश्च पुनीहि ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - O lord all watchful, ever awake, fill the great earth and heaven with prosperity, light and beauty of life like the sun which blesses the dawn with the beauty and glory of its rays of light.
