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देवता: पवमानः सोमः ऋषि: रहूगणः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

स प॒वित्रे॑ विचक्ष॒णो हरि॑रर्षति धर्ण॒सिः । अ॒भि योनिं॒ कनि॑क्रदत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa pavitre vicakṣaṇo harir arṣati dharṇasiḥ | abhi yoniṁ kanikradat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः । प॒वित्रे॑ । वि॒ऽच॒क्ष॒णः । हरिः॑ । अ॒र्ष॒ति॒ । ध॒र्ण॒सिः । अ॒भि । योनि॑म् । कनि॑क्रदत् ॥ ९.३७.२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:37» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:27» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अभियोनिम्) प्रकृति में सर्वत्र व्याप्त होकर (कनिक्रदत्) शब्दायमान (सः) वह परमात्मा (पवित्रे अर्षति) पवित्र हृदयों में निवास करता है और (विचक्षणः) सर्वद्रष्टा है (हरिः) पापों का हरनेवाला तथा (धर्णसिः) सबको धारण करनेवाला है ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा ही इन सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों का अधिष्ठाता तथा विधाता है ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

विचक्षण- हरि-धर्णसि

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सः) = वह सोम (पवित्रे) = पवित्र हृदयवाले पुरुष में (अर्षति) = गतिवाला होता है। शरीर में सुरक्षित हुआ हुआ यह (विचक्षणः) = विशेषरूप से देखनेवाला है, हमारे ज्ञान की वृद्धि का कारण होता है। यह (हरिः) = सब रोगों का हरण करनेवाला है, अथवा सब वासनाओं को विनष्ट करनेवाला है तथा धर्णसिः = धारक है। मस्तिष्क में 'विचक्षण', हृदय में 'हरि', शरीर में यह सोम 'धर्णसि' है । [२] यह सोम (कनिक्रदत्) = उस प्रभु के नामों का उच्चारण करता हुआ (योनिं अभि) = उस ब्रह्माण्ड के उत्पत्ति-स्थान [ = प्रभव] प्रभु की ओर चलता है । सोमरक्षण से हमारी प्रवृत्ति प्रभु- स्मरणवाली बनती है, हम प्रभु के नामों का उच्चारण करते हुए प्रभु की ओर बढ़ते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें ज्ञानी, पवित्र व स्वस्थ बनाता है। हमें प्रभु स्मरण की वृत्तिवाला बनाकर प्रभु की ओर ले चलता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अभियोनिम्) प्रकृतिं सर्वामवष्टभ्य (कनिक्रदत्) शब्दायमानः (सः) सः परमात्मा (पवित्रे अर्षति) शुचिषु हृदयेषु निवसति किञ्च (विचक्षणः) सर्वद्रष्टा (हरिः) पापापनुदः (धर्णसिः) सर्वेषां धाता चास्ति ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma, all watching omniscient, destroyer of suffering, omnipotent wielder and sustainer of the universe, pervades and vibrates in Prakrti, proclaiming its presence loud and bold as thunder.