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अस॑र्जि॒ रथ्यो॑ यथा प॒वित्रे॑ च॒म्वो॑: सु॒तः । कार्ष्म॑न्वा॒जी न्य॑क्रमीत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asarji rathyo yathā pavitre camvoḥ sutaḥ | kārṣman vājī ny akramīt ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अस॑र्जि । रथ्यः॑ । य॒था॒ । प॒वित्रे॑ । च॒म्वोः॑ । सु॒तः । कार्ष्म॑न् । वा॒जी । नि । अ॒क्र॒मी॒त् ॥ ९.३६.१

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:36» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:26» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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आर्यमुनि

अब परमात्मा को रै और प्राणरूप शक्ति के आधाररूप से वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (रथ्यः) सब गतिशील पदार्थों को गति देनेवाला वह परमात्मा (चम्वोः सुतः) रै और प्राणरूप दोनों शक्तियों में प्रसिद्ध है और उसने (यथा असर्जि) पूर्ववत् सब संसार को पैदा किया और (वाजी) श्रेष्ठ बलवाला वह परमात्मा (पवित्रे कार्ष्मन् न्यक्रमीत्) भजन द्वारा उसको आकर्षण करनेवाले भक्तों के पवित्र हृदय में आकर विराजमान होता है ॥१॥
भावार्थभाषाः - यद्यपि परमात्मा अपनी व्यापकता से प्रत्येक पुरुष के हृदय में विद्यमान है, तथापि जो पुरुष अपने अन्तःकरण को निर्मल रखते हैं, उनके हृदय में उसकी स्फुट प्रतीति होती है, इसी अभिप्राय से कथन किया है कि वह भक्तों के हृदय में विराजमान है ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

कार्ष्मन् वाजी

पदार्थान्वयभाषाः - [१] यह सोम (असर्जि) = शरीर में उत्पन्न किया जाता है। शरीर में उत्पन्न हुआ हुआ यह सोम (यथा रथ्य:) = इस प्रकार है जैसे कि रथ में जुतनेवाला एक उत्तम घोड़ा । यह घोड़ा जैसे लक्ष्य स्थान पर पहुँचानेवाला होता है, इसी प्रकार सोम भी हमें जीवनयात्रा को पूर्ण करके लक्ष्य पर पहुँचाता है । यह सोम (पवित्रे) = पवित्र हृदयवाले पुरुष में (चम्वोः) = द्यावापृथिवी के निमित्त, अर्थात् मस्तिष्क व शरीर के निमित्त (सुतः) = उत्पन्न किया गया है। यह सोम मस्तिष्क को ज्ञानोज्ज्वल बनाता है और शरीर को तेजस्विता से दीप्त । [२] यह (वाजी) = शक्तिशाली सोम (कार्ष्मन्) = संग्राम में (नि अक्रमीत्) = शत्रुओं को पाँव तले कुचलनेवाला होता है [कार्ष्मयुद्धं इतरेतरकर्षणात्] । रोगकृमियों को नष्ट करके यह जहाँ रोगों को विनष्ट करता है, वहाँ काम-क्रोध-लोभ आदि वासनाओं का भी यह विनाश करनेवाला है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम [वीर्य] शरीर में सुरक्षित होने पर रोग व वासनारूप शत्रुओं को कुचल डालता है।
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आर्यमुनि

अथ परमात्मनः शक्तिद्वयाश्रयत्वं वर्ण्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (रथ्यः) सर्वगतिशीलपदार्थेभ्यो गतिदः परमात्मा (चम्वोः सुतः) रैप्राणरूपयोर्द्वयोः शक्त्योः प्रसिद्धः किञ्च सः (यथा असर्जि) पूर्ववत् सर्वं लोकं समजीजनत् अथ च (वाजी) प्रबलः सः (पवित्रे कार्ष्मन् न्यक्रमीत्) अर्चनया स्वाकर्षणसमर्थानां भक्तानां पवित्रे हृदय आगत्य विराजते ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Just as a passionate champion warrior shoots to the goal straight, so does Soma, potent spirit of peace, purity and glory, invoked and celebrated with devotion in the purity of heart and soul, descends to the centre core of the heart without delay.