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अ॒स्मे धे॑हि द्यु॒मद्यशो॑ म॒घव॑द्भ्यश्च॒ मह्यं॑ च । स॒निं मे॒धामु॒त श्रव॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asme dhehi dyumad yaśo maghavadbhyaś ca mahyaṁ ca | sanim medhām uta śravaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒स्मे इति॑ । धे॒हि॒ । द्यु॒ऽमत् । यशः॑ । म॒घव॑त्ऽभ्यः । च॒ । मह्य॑म् । च॒ । स॒निम् । मे॒धाम् । उ॒त । श्रवः॑ ॥ ९.३२.६

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:32» मन्त्र:6 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:22» मन्त्र:6 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:6


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! आप (अस्मे) मेरे लिये (द्युमत् यशः धेहि) दीप्तिवाले यश को दीजिये (मह्यम् च) कर्मयोगियों के लिये और (मह्यम् च) मेरे लिये (सनिम्) धन को (मेधाम्) बुद्धि को तथा (उत श्रवः च) सुन्दर कीर्ति को दीजिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - कर्मयोग और ज्ञानयोग के द्वारा परमात्मा निम्नलिखित गुणों का प्रदान करता है, धन बुद्धि सुकीर्ति इत्यादि ॥६॥ यह ३२ वाँ सूक्त और २२ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

घुमद्यशः, सनिं मेधां उत श्रवः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र के अनुसार प्रभु स्मरण के साथ सात्त्विक संग्राम के द्वारा वासनाओं का पराजय करने पर सुरक्षित हुए हुए सोम ! तू (अस्मे) = हमारे लिये (द्युमद्यशः) = ज्योतिर्मय यश को (धेहि) = धारण कर । तेरे द्वारा हमारी ज्ञान-ज्योति बढ़े तथा हम यशस्वी कार्यों को ही करनेवाले हों। [२] (मघवद्भ्यः) = यज्ञशील पुरुषों के लिये (च) = और (मह्यम्) = मेरे लिये (सनिं मेधाम्) = धनों का उचित संविभाग करनेवाली बुद्धि को (उत) = और (श्रवः) = ज्ञान को धारण कर । सुरक्षित सोम से हमें बुद्धि व ज्ञान प्राप्त हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित हुआ हुआ सोम हमारे जीवन को 'ज्योतिर्मय, यशस्वी, मेधावाला तथा ज्ञान- सम्पन्न' बनाये। सुरक्षित हुआ हुआ सोम ही हमें 'त्रित' बनाता है, 'काम-क्रोध-लोभ' तीनों को तराता है यही हमारे 'शरीर, मन व बुद्धि' तीनों का विकास करता है [त्रीन् तनोति] । यह त्रित ही अगले सूक्त का ऋषि है-
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! त्वम् (अस्मे) अस्मभ्यं (द्युमत् यशः धेहि) दीप्तिमत् यशो देहि (मघवद्भ्यः) कर्मयोगिभ्यः (मह्यम् च) मह्यं च (सनिम्) धनं (मेधाम्) बुद्धिं (उत श्रवः च) सुन्दरकीर्तिं च देहि ॥६॥ इति द्वात्रिंशत्तमं सूक्तं द्वाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - For all of us, for the leading lights of power, honour and excellence, and for me too, bring honour and fame enriched with enlightenment, bring us food and energy, high order of mind and intelligence and total fulfilment for the soul.