एन्दो॒ पार्थि॑वं र॒यिं दि॒व्यं प॑वस्व॒ धार॑या । द्यु॒मन्तं॒ शुष्म॒मा भ॑र ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
endo pārthivaṁ rayiṁ divyam pavasva dhārayā | dyumantaṁ śuṣmam ā bhara ||
पद पाठ
आ । इ॒न्दो॒ इति॑ । पार्थि॑वम् । र॒यिम् । दि॒व्यम् । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । द्यु॒ऽमन्त॑म् । शुष्म॑म् । आ । भ॒र॒ ॥ ९.२९.६
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:29» मन्त्र:6
| अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:19» मन्त्र:6
| मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:6
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे ऐश्वर्यशालिपरमात्मन् ! (दिव्यम् पार्थिवम् रयिम्) आप हमको द्युलोकसम्बन्धी तथा पृथ्वीसम्बन्धी ऐश्वर्य की (धारया पवस्व) धारा से पवित्र करिये और ((द्युमन्तम्) दिव्यबल को (आभर) ) दीजिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष उक्त प्रकार के अवगुणों से रहित होते हैं, उनको परमात्मा द्युलोक पृथिवीलोक के ऐश्वर्यों से भरपूर करता है ॥६॥ यह २९ वाँ सूक्त और १९ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
घुमान् शुष्म
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (इन्दो) = हे सोम ! तू (पार्थिवं रयिम्) = इस शरीर रूप पृथिवी के दृढ़ता व शक्ति रूप धन को (आपवस्व) = हमें सर्वथा प्राप्त करा । इसी प्रकार (दिव्यं) [रयिं] = मस्तिष्क रूप द्युलोक के ज्ञानरूप धन को भी (धारया) = अपनी धारक शक्ति से हमारे लिये प्राप्त करा । [२] इस प्रकार (घुमन्त) = प्रशस्त ज्ञान की ज्योतिवाले (शुष्मम्) = शत्रु-शोषक बल को (आभर) = तू हमारे लिये प्राप्त करानेवाला हो । सोमरक्षण से हमारे में 'ब्रह्म व क्षत्र' दोनों का विकास हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें दृढ़ शरीर व दीप्त मस्तिष्क बनाता हैं । दृढ़ शरीर व दीप्त मस्तिष्क बनकर यह सब शत्रुओं का भेदन करनेवाला 'भिन्दु' होता हुआ 'बिन्दु' कहलाता है । सोम का रक्षक होने से भी यह सोम का पुतला 'बिन्दु' नामवाला ही हो जाती है [बिन्दुः सोम 'मरणं बिन्दुपातेन जीवनं बिन्दुधारणात् '] । यह कहता है-
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे ऐश्वर्यशालिन् परमात्मन् ! भवान् (दिव्यम् पार्थिवम् रयिम्) अस्मान् दिव्यपार्थिवैश्वर्याणां (धारया पवस्व) धारया पुनातु (द्युमन्तम् शुष्मम्) दिव्यं बलं च (आभर) देहि ! ॥६॥ इत्येकोनत्रिंशत्तमं सूक्तमेकोनविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, blissful as the moon and generous as showers of rain, pure and purifying, flow forth, sanctify us and bring us streams of wealth, honour and excellence of the earth and heaven, bear and bring us divine strength, forbearance and fortitude of a high order of freedom and progress.
