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ए॒ष वृषा॒ कनि॑क्रदद्द॒शभि॑र्जा॒मिभि॑र्य॒तः । अ॒भि द्रोणा॑नि धावति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

eṣa vṛṣā kanikradad daśabhir jāmibhir yataḥ | abhi droṇāni dhāvati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒षः । वृषा॑ । कनि॑क्रदत् । द॒शऽभिः॑ । जा॒मिऽभिः॑ । य॒तः । अ॒भि । द्रोणा॑नि । धा॒व॒ति॒ ॥ ९.२८.४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:28» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एषः वृषा) यह सर्वकामप्रद परमात्मा (कनिक्रदत्) शब्दायमान और (दशभिः जामिभिः यतः) दश स्थूलभूत और सूक्ष्मभूतों द्वारा स्थिर है (अभि द्रोणानि धावति) कार्यमात्र में प्राप्त है ॥४॥
भावार्थभाषाः - तात्पर्य यह है कि परमात्मा दश सूक्ष्मभूत और दश स्थूलभूतों को व्याप्त करके स्थिर है, इसीलिये “स भूमिं सर्वतस्पृत्वाऽत्यतिष्ठद् दशाङ्गुलम्” यह कथन किया है कि वह कार्यमात्र को अपने में व्याप्त करके दश प्रकार के भूतों को भी अतिक्रमण करके विराजमान है ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दशभिर्जामिभिर्यतः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (एषः) = यह सोम वृषा शक्तिशाली है, शक्ति को देनेवाला है। (कनिक्रदत्) = प्रभु का आह्वान करता हुआ यह सोम (दशभिः) = दस (जामिभिः) = शक्तियों को प्रादुर्भूत करनेवाले प्राणों से (यतः) = संयत हुआ हुआ (द्रोणानि अभि) = इन शरीर रूप पात्रों की ओर (धावति) = गतिवाला होता है, [२] प्राणापान के द्वारा सोम की ऊर्ध्वगति होती है। शरीर में सुरक्षित हुआ हुआ यह सोम हमें प्रभु प्रवण करता है और शक्तिशाली बनाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- दस प्राणों के संयम से सोम शरीर में सुरक्षित होता है। सुरक्षित हुआ हुआ यह हमें शक्तिशाली बनाता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एषः वृषा) सर्वकामप्रदोऽयं परमात्मा (कनिक्रदत्) शब्दायमानः (दशभिः जामिभिः यतः) दशधा स्थूलसूक्ष्मभूतैः स्थिरः (अभि द्रोणानि धावति) कार्य्यमात्रं प्राप्तो भवति ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - This omnificent shower of generous divinity vibrating by the dynamics of Prakrti and her tenfold mode of subtle and gross elements proclaims its presence loud and bold in beauteous forms of mutations and manifestations of nature in the universe.