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तं साना॒वधि॑ जा॒मयो॒ हरिं॑ हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः । ह॒र्य॒तं भूरि॑चक्षसम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ sānāv adhi jāmayo hariṁ hinvanty adribhiḥ | haryatam bhūricakṣasam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम् । सानौ॑ । अधि॑ । जा॒मयः॑ । हरि॑म् । हि॒न्व॒न्ति॒ । अद्रि॑ऽभिः । ह॒र्य॒तम् । भूरि॑ऽचक्षसम् ॥ ९.२६.५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:26» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:16» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (जामयः) इन्द्रियवृत्तियें (तम्) उस परमात्मा को (सानौ अधि) उच्च से उच्च प्रदेश में (अद्रिभिः) अपनी शक्तियों से (हिन्वन्ति) प्रेरणा करती हैं जो कि (हरिम्) भक्तों के दुःख को हरनेवाला और (हर्यतम्) प्रलयादि परिणामों में हेतुभूत तथा (भूरिचक्षसम्) सर्वज्ञ है ॥५॥
भावार्थभाषाः - उक्त परमात्मा ही जगत् के जन्मादिकों का हेतु है अर्थात् उसी से जगत् की उत्पत्ति, स्थिति तथा प्रलय होता है। वह परमात्मा हिमालय के उच्च से उच्च प्रदेशों में और सागर के गम्भीर से गम्भीर स्थानों में विराजमान है। उस सर्वज्ञ का साक्षात्कार चित्तवृत्ति- निरोधरूपी योगद्वारा ही हो सकता है, अन्यथा नहीं ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

हर्यतं भूरिचक्षसम्

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (जामयः) = [जमतिः गतिकर्मा नि०] अपने कर्त्तव्य में लगे रहनेवाले गतिशील पुरुष (तम्) = उस (हरिम्) = सब रोगों का हरण करनेवाले सोम को (अद्रिभि:) = [आदृ- adore ] उपासनाओं के द्वारा (सानौ अधि) = शिखर प्रदेश में, मस्तिष्क में (हिन्वन्ति) = प्रेरित करते हैं । उपासना साधन बनती है, वासनाओं से बचने का इस प्रकार वासना विनाश साधन बनता है सोमरक्षण का । सुरक्षित सोम शरीर में ऊर्ध्वगतिवाला होता हुआ मस्तिष्क में पहुँचता है । यहाँ यह ज्ञानाग्नि को दीप्त कर देता है। [२] उस सोम को शिखर प्रदेश की ओर प्रेरित करते हैं, जो कि (हर्यतम्) = कमनीय है व हमें गतिमय बनानेवाला है तथा (भूरिचक्षसम्) = पालक व पोषक ज्ञानवाला है। यह हमें उस ज्ञान को प्राप्त कराता है जो कि हमारा पालक व पोषक बनता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम का रक्षण [क] क्रिया में लगे रहने से होता है, [ख] तथा उपासना द्वारा सुरक्षित सोम हमारे जीवन को कमनीय व ज्ञान- ज्योतिवाला बनाता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (जामयः) इन्द्रियवृत्तयः (तम्) तस्य परमात्मनः (सानौ अधि) उन्नतोन्नतप्रदेशे (अद्रिभिः) स्वशक्तिभिः (हिन्वन्ति) प्रेरयन्ति यः (हरिम्) भक्तदुःखविहन्ता (हर्यतम्) प्रलयादिपरिणामेषु हेतुभूतः (भूरिचक्षसम्) सर्वज्ञश्चास्ति ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Sages in unison, with their highest and most intense mental and spiritual faculties, adore, celebrate and realise that Soma on top of existence who is glorious and blissful, destroyer of suffering, and universal watcher, dispenser and disposer of the world of existence.