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कु॒विद्वृ॑ष॒ण्यन्ती॑भ्यः पुना॒नो गर्भ॑मा॒दध॑त् । याः शु॒क्रं दु॑ह॒ते पय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kuvid vṛṣaṇyantībhyaḥ punāno garbham ādadhat | yāḥ śukraṁ duhate payaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कु॒वित् । वृ॒ष॒न्यन्ती॑भ्यः । पु॒ना॒नः । गर्भ॑म् । आ॒ऽदध॑त् । याः । शु॒क्रम् । दु॒ह॒ते । पयः॑ ॥ ९.१९.५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:19» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:9» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पुनानः) सबको पवित्र करनेवाले परमात्मा ने (वृषण्यन्तीभ्यः) प्रकृतियों से (कुविद् गर्भम्) बहुत से गर्भ को (आदधत्) धारण किया (याः) जो प्रकृतियें (शुक्रम् पयः) सूक्ष्म भूतों से कार्यरूप ब्रह्माण्ड को (दुहते) दुहती हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - तात्पर्य यह है कि जलादि सूक्ष्म भूतों से यह ब्रह्माण्ड स्थूलावस्था में आता है। पञ्च तन्मात्रा के कार्य जो पाँच सूक्ष्म भूत उन्हीं का कार्य यह सब संसार है, जैसा कि ‘तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाशः सम्भूतः, आकाशाद्वायुः, वायोरग्निरग्नेरापोऽद्भ्यः पृथिवी’ तै० २।१॥ इत्यादि वाक्यों में निरूपण किया है कि परमात्मारूपी निमित्त कारण से प्रथम आकाशरूप तत्त्व का आर्विभाव हुआ, जो एक अतिसूक्ष्मतत्त्व और जिसका शब्द गुण है फिर उससे वायु और वायु के संघर्षण से अग्नि और अग्नि से फिर जल आर्विभाव में अर्थात् स्थूलावस्था में आया। उसके अनन्तर पृथिवी ने स्थूलरूप को धारण किया, यह कार्यक्रम है, जिसको उक्त मन्त्र ने वर्णन किया है ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु से मेल

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (वृषण्यन्तीभ्यः) = [वृषणं सोममात्मन इच्छन्तीभ्यः] शक्ति को देनेवाले सोम की कामना करती हुई प्रजाओं के लिये (पुनानः) = पवित्रता को करता हुआ यह सोम (कुवित्) = खूब (गर्भम्) = प्रभु के साथ मेल को आदधत् धारण करता है। जब हम सोम का रक्षण करते हैं, यह रक्षित सोम हमें निर्मल जीवनवाला बनाता है, अन्ततः प्रभु से हमारा मेल कराता है। [२] उन प्रजाओं का यह प्रभु से मेल कराता है, (याः) = जो इस सोम से (शुक्रं पयः) = दीप्त आप्यायन शक्ति को (दुहते) = दोहते हैं। सोमरक्षण के द्वारा शरीर के सब अंग-प्रत्यंग आप्यायित हो उठते हैं। सब अंग-प्रत्यंगों के आप्यायित होने पर हम पूर्ण स्वास्थ्य का अनुभव करते हैं, और अपने जीवन को पवित्र बनाकर प्रभु से मेलवाले होते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम हमारे शरीरों को आप्यायित करके हमारे जीवन को पवित्र करता है तथा प्रभु से हमारा मेल कराता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पुनानः) सर्वस्य पावयिता परमात्मा (वृषण्यन्तीभ्यः) प्रकृतिभ्यः (कुविद् गर्भम्) बहुं गर्भं (आदधत्) दधार (याः) याः प्रकृतयः (शुक्रम् पयः) सूक्ष्मभूतेभ्यः कार्यरूपब्रह्माण्डं (दुहते) दुहन्ति ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The great lord omnipotent Soma, pure and immaculate, impregnates the forms of nature overflowing with desire which receive the seed and create living milk for the growth of life.