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आ क॒लशे॑षु धावति प॒वित्रे॒ परि॑ षिच्यते । उ॒क्थैर्य॒ज्ञेषु॑ वर्धते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā kalaśeṣu dhāvati pavitre pari ṣicyate | ukthair yajñeṣu vardhate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ । क॒लशे॑षु । धा॒व॒ति॒ । प॒वित्रे॑ । परि॑ । सि॒च्य॒ते॒ । उ॒क्थैः । य॒ज्ञेषु॑ । व॒र्ध॒ते॒ ॥ ९.१७.४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:17» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:7» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - वह पूर्वोक्त परमात्मा (कलशेषु आ धावति) ‘कलं शवति इति कलशः’ वेदादिवाक्यों में भली-भाँति वाच्यरूप से विराजमान है (पवित्रे परिषिच्यते) और पात्र में अभिषेक को प्राप्त होता है और (उक्थैः यज्ञेषु वर्धते) स्तुतिद्वारा यज्ञों में प्रकाशित किया जाता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - जब वेदवेत्ता लोग मधुर ध्वनि से यज्ञों में उक्त परमात्मा का स्तवन करते हैं, तो मानों उसका साक्षात् रूप भान होने लगता है ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

कलश-शोधन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] ‘कलाः शेरते अस्मिन् ' इस व्युत्पत्ति से १६ कलाओं के निवास का आधार बना हुआ यह शरीर कलश है । सोम [वीर्य] (कलशेषु) = इन शरीरों में (आधावति) = समन्तात् शोधन करनेवाला होता है [धाव् शुद्धौ] । यह सोम (पवित्रे) = पवित्र हृदय में (परिषिच्यते) = समन्तात् सिक्त होता है । हृदय में अपवित्र भावों के आने पर ही तो इसका विनाश होता है। [२] यह सोम (यज्ञेषु) = यज्ञों में, श्रेष्ठतम कर्मों में (उक्थैः) = प्रभु के स्तोत्रों के होने पर (वर्धते) = बढ़ता है। सोम का वर्धन या शरीर में स्थापन तभी हो पाता है जब कि हम यज्ञात्मक कर्मों में प्रवृत्त रहें और प्रभु का स्तवन करनेवाले बनें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - यज्ञों व स्तोत्रों में लगे रहकर हम सोम को शरीर में सुरक्षित रखें। यह हमें शुद्ध बनायेगा ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - स पूर्वोक्तः परमात्मा (कलशेषु आ धावति) वेदादिवाक्येषु वाच्यतया सम्यग् विराजते (पवित्रे परिषिच्यते) पात्रे ह्यभिषिक्तो भवति (उक्थैः यज्ञेषु वर्धते) स्तुतिभिर्यज्ञेषु प्रकाश्यते ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - This soma of divine vitality runs and ripples in forms of life, spreads from one mind to another through the light of discrimination and waxes and rises by songs of praise in yajnas.