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अति॑ श्रि॒ती ति॑र॒श्चता॑ ग॒व्या जि॑गा॒त्यण्व्या॑ । व॒ग्नुमि॑यर्ति॒ यं वि॒दे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ati śritī tiraścatā gavyā jigāty aṇvyā | vagnum iyarti yaṁ vide ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अति॑ । श्रि॒ती । ति॒र॒श्चता॑ । ग॒व्या । जि॒गा॒ति॒ । अण्व्या॑ । व॒ग्नुम् । इ॒य॒र्ति॒ । यम् । वि॒दे ॥ ९.१४.६

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:14» मन्त्र:6 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:4» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अति श्रिती) ‘श्रितिमतिकान्तः अतिश्रिती” जो किसी अन्य वस्तु के आश्रित न हो, उसका नाम अतिश्रिती अर्थात् सबका आश्रय परमात्मा (अण्व्या) सूक्ष्म (तिरश्चता) तीक्ष्ण (गव्या) इन्द्रिय की वृत्तियों से (जिगाति) प्रकाश को प्राप्त होता है (यम्) जिसको (वग्नुम्) शब्दप्रमाण (विदे) जिज्ञासु के लिये (इयर्ति) प्रकट करता है ॥६॥
भावार्थभाषाः - जब धारणा-ध्यानादि योगाङ्गों से चित्त की वृत्तियें निर्मल होती हैं, तो उक्त परमात्मा को विषय करती हैं। जो पुरुष शब्दप्रमाण पर विश्वास करते हैं, वे साधनसम्पन्न वृत्तियों के द्वारा उसका अनुभव करते हैं, अन्य नहीं ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु प्राप्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] सोमरक्षण से बुद्धि सूक्ष्म बनती है । इस (अण्व्या) = सूक्ष्म बुद्धि के द्वारा (गव्या) = [गव्यानि] वेदवाणी गौ से प्राप्य ज्ञानदुग्धों को (अति श्रिती) = [श्रयणार्थम्] अतिशयेन सेवन करने के लिये (तिरश्चता) = [तिरस् अञ्च् ] तिरोहित रूप से गति करनेवाले, रुधिर में ही व्याप्त होकर गति करते हुए सोम से (जिगाति) = यह गतिमय होता है । सोम को शरीर में ही सुरक्षित करने पर यह सोम रुधिर व्याप्त हुआ-हुआ दिखता नहीं। इस सोम के द्वारा हमें वेदवाणी रूप गौ के ज्ञानदुग्ध का पान करनेवाली सूक्ष्म बुद्धि प्राप्त होती है । [२] इस ज्ञानदुग्ध का पान करनेवाला व्यक्ति (वग्नुम्) = वेदज्ञान देनेवाले उस प्रभु को इयर्ति प्राप्त होता है। उस प्रभु को (यम्) = जिसको (विदे) = जानने के लिये साधन रूप से इस सोम का शरीर में स्थापन हुआ है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण से वह सूक्ष्म बुद्धि प्राप्त होती है जो कि हमें वेदज्ञान को प्राप्त कराने में सहायक होती है और हमें प्रभु का साक्षात्कार करानेवाली होती है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अति श्रिती) अनन्याधारः परमात्मा (अण्व्या) अणुभिः (तिरश्चता) तीक्ष्णाभिः (गव्या) इन्द्रियवृत्तिभिः (जिगाति) प्रकाश्यते (यम्) यम् (वग्नुम्) शब्दप्रमाणं (विदे) जिज्ञासवे (इयर्ति) प्रकटयति अन्यस्मै न ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Pure and absolute, free from any mode or medium, it reveals itself by the subtlest and most pointed intelligential awareness of the devotee, and this confirms the truth of the Vedic words of revelation for the seeker of divinity and knowledge.