नृभि॑र्येमा॒नो ज॑ज्ञा॒नः पू॒तः क्षर॒द्विश्वा॑नि म॒न्द्रः स्व॒र्वित् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
nṛbhir yemāno jajñānaḥ pūtaḥ kṣarad viśvāni mandraḥ svarvit ||
पद पाठ
नृऽभिः॑ । ये॒मा॒नः । ज॒ज्ञा॒नः । पू॒तः । क्षर॑त् । विश्वा॑नि । म॒न्द्रः । स्वः॒ऽवित् ॥ ९.१०९.८
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:109» मन्त्र:8
| अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:20» मन्त्र:8
| मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:8
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (नृभिः, येमानः) संयमी पुरुषों द्वारा साक्षात्कार किये हुए (जज्ञानः) सर्वत्र आविर्भाव को प्राप्त (पूतः) पवित्र (मन्द्रः) आनन्दस्वरूप (स्वर्वित्) सर्वज्ञ आप (विश्वानि) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य (क्षरत्) हमको देवें ॥८॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा का साक्षात्कार संयमी पुरुषों को ही होता है अर्थात् जप, तप, संयम तथा अनुष्ठान द्वारा वही लोग साक्षात्कार करते हैं। वह परमात्मा अपनी दिव्य ज्योतियों से सर्वत्र आविर्भाव को प्राप्त और नित्य शुद्ध बुद्ध मुक्तस्वभाव है, वह पिता हमें सब प्रकार का सुख प्रदान करे ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
मन्द्रः स्वर्वित्
पदार्थान्वयभाषाः - (नृभिः) = उन्नतिपथ पर चलनेवाले मनुष्यों से (येमानः) = [नियम्यमानः] संयत किया जाता हुआ, (जज्ञान) = शक्तियों का प्रादुर्भाव करता हुआ, (पूतः) = यह पवित्र सोम (विश्वानि) = सब अन्नमय आदि कोशों के तेजस्वता आदि ऐश्वर्यों को (क्षरत्) = प्राप्त कराता है। यह सोम (मन्द्र) = सुख का जनक है तथा (स्वर्वित्) = उस स्वयं देदीप्यमान ज्योति प्रभु को प्राप्त करानेवाला है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- उन्नतिपथ पर चलनेवाले मनुष्य ही सोम का संयम कर पाते हैं। यह संयत पवित्र सोम सब कोशों को ऐश्वर्य सम्पन्न बनाता है तथा उस ज्योतिर्मय प्रभु को प्राप्त कराता है।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (नृभिः, येमानः) संयमिभिः साक्षात्कृतः (जज्ञानः) सर्वत्राविर्भूतः (पूतः) पवित्रः (मन्द्रः) आनन्दस्वरूपः (स्वर्वित्) सर्वज्ञो भवान् (विश्वानि) सर्वाणि ऐश्वर्याणि (क्षरत्) मह्यं ददातु ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - Realised by leading lights, manifestive in the world and consciousness, presence consecrated in the heart core, blessing the world with divinity, ecstatic, the presence of heaven itself, that’s what you are, Soma.
