दे॒वेभ्य॑स्त्वा॒ वृथा॒ पाज॑से॒ऽपो वसा॑नं॒ हरिं॑ मृजन्ति ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
devebhyas tvā vṛthā pājase po vasānaṁ harim mṛjanti ||
पद पाठ
दे॒वेभ्यः॑ । त्वा॒ । वृथा॑ । पाज॑से । अ॒पः । वसा॑नम् । हरि॑म् । मृ॒ज॒न्ति॒ ॥ ९.१०९.२१
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:109» मन्त्र:21
| अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:11
| मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:21
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (देवेभ्यः) विद्वानों के लिये (पाजसे) बल के लिये (अपः, वसानं) प्रकृतिरूप व्याप्य वस्तु में निवास करते हुए (हरिं) अविद्या का हरण करनेवाले (त्वां) तुमको (वृथा) कर्मफलों में अनासक्त होकर (मृजन्ति) उपासक लोग साक्षात्कार करते हैं ॥२१॥
भावार्थभाषाः - विद्याप्राप्ति द्वारा विद्वान् बनना, बलवान् होना तथा नानाविध ऐश्वर्य्य प्राप्त करके ऐश्वर्य्यशाली बनना परमात्मा की उपलब्धि के विना कदापि नहीं हो सकता, इसलिये ऐश्वर्य्य की इच्छा करनेवाले पुरुषों का कर्तव्य है कि वह ज्ञानद्वारा परमात्मा को उपलब्ध करें ॥२१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
देवेभ्यः-पाजसे
पदार्थान्वयभाषाः - (अपः वसानम्) = कर्मों को धारण करते हुए (हरिम्) = सब रोगों के (हर्ता त्वा) = तुझ को (मृजन्ति) = शुद्ध करते हैं । वस्तुतः कर्मों में लगे रहना ही सोम शुद्धि का साधन है। तुझे (देवेभ्यः) = दिव्य गुणों की प्राप्ति के लिये तथा (वृथा पाजसे) = अनायास ही शक्ति को प्राप्त कराने के लिये शुद्ध करते हैं । शुद्ध हुआ हुआ सोम दिव्य गुणों व शक्ति का साधन बनता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - कर्मों में व्यापृति के द्वारा सोम को शुद्ध करते हैं। यह दिव्य गुणों व शक्ति को प्राप्त करानेवाला होता है ।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (देवभ्यः) विद्वद्भ्यः (पाजसे) बलाय (अपः, वसानम्) प्रकृतिरूपव्याप्यवस्तुनि निवसन्तं (हरिं) अविद्याहर्त्तारं (त्वाम्) भवन्तं (वृथा) कर्मफलमनभिलष्य (मृजन्ति) उपासकाः साक्षात्कुर्वन्ति ॥२१॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - They spontaneously exalt you, Soma, vibrant in Prakrti and in Karma, the saviour spirit, for the sages and for achievement of strength.
