इन्द्र॑स्ते सोम सु॒तस्य॑ पेया॒: क्रत्वे॒ दक्षा॑य॒ विश्वे॑ च दे॒वाः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
indras te soma sutasya peyāḥ kratve dakṣāya viśve ca devāḥ ||
पद पाठ
इन्द्रः॑ । ते॒ । सो॒म॒ । सु॒तस्य॑ । पे॒याः॒ । क्रत्वे॑ । दक्षा॑य । विश्वे॑ । च॒ । दे॒वाः ॥ ९.१०९.२
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:109» मन्त्र:2
| अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:20» मन्त्र:2
| मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:2
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (ते) तुम्हारे (सुतस्य) साक्षात्काररूप रस को (इन्द्रः) कर्मयोगी (क्रत्वे) विज्ञान तथा (दक्षाय) चातुर्य्य के लिये (पेयाः) पान करें (च) और (विश्वे, देवाः) सब देव तुम्हारे आनन्द को पान करें ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मानन्द के पान करने का अधिकार एकमात्र दैवीसम्पत्तिवाले पुरुषों को ही हो सकता है, अन्य को नहीं, इसी अभिप्राय से यहाँ कर्मयोगी, ज्ञानयोगी तथा देवों के लिये ब्रह्मामृत का वर्णन किया गया है ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
प्रज्ञान+बल
पदार्थान्वयभाषाः - हे सोम ! (सुतस्य ते) = उत्पन्न हुए हुए तेरा (इन्द्रः) = जितेन्द्रिय पुरुष (पेयाः) = पान करे । जितेन्द्रियता के द्वारा शरीर के अन्दर ही तेरा रक्षण करे। इस प्रकार यह जितेन्द्रिय पुरुष (क्रत्वे) = प्रज्ञान के लिये तथा (दक्षाय) = बल के लिये हो । (च) = और इस सोमरक्षण के द्वारा (विश्वे देवा:) = सब दिव्य गुण इस जितेन्द्रिय पुरुष को प्राप्त हों। 'इन्द्र' इन सब देवों का अधिष्ठाता हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - जितेन्द्रिय पुरुष सोम का पान करता हुआ प्रज्ञान बल व सब दिव्य गुणों को प्राप्त हो ।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सर्वोत्पादक ! (ते) तव (सुतस्य) साक्षात्काररसं (इन्द्रः) कर्मयोगी (क्रत्वे) विज्ञानाय (दक्षाय) चातुर्याय (पेयाः) पिबेत् (च) तथा च (विश्वे) सर्वे (देवाः) देवगणाः तवानन्दं पिबन्तु ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - Soma, spirit of glory and grandeur, loved, realised and reverenced, let Indra, the ruling soul, experience the ecstasy for noble action and efficiency. Let all divinities of the world enjoy the divine presence.
