प्र सो॑म या॒हीन्द्र॑स्य कु॒क्षा नृभि॑र्येमा॒नो अद्रि॑भिः सु॒तः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
pra soma yāhīndrasya kukṣā nṛbhir yemāno adribhiḥ sutaḥ ||
पद पाठ
प्र । सो॒म॒ । या॒हि॒ । इन्द्र॑स्य । कु॒क्षा । नृऽभिः॑ । ये॒मा॒नः । अद्रि॑ऽभिः । सु॒तः ॥ ९.१०९.१८
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:109» मन्त्र:18
| अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:8
| मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:18
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (अद्रिभिः, सुतः) चित्तवृत्तियों के संयम द्वारा साक्षात्कार किये हुए (नृभिः, येमानः) संयमी पुरुषों के लक्ष्य (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! आप (इन्द्रस्य) कर्मयोगी के (कुक्षा) अन्तःकरण में (याहि) प्राप्त हों ॥१८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का भाव यह है कि जो पुरुष उसी एकमात्र परब्रह्म परमात्मा को अपना लक्ष्य बनाते हैं, उनको परमपिता परमात्मा अवश्य देदीप्यमान करते हैं ॥१८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
नभिः येमानः
पदार्थान्वयभाषाः - हे (सोम) = वीर्य ! तू (इन्द्रस्य) = जितेन्द्रिय पुरुष के (कुक्षा) = उदर में (प्रयाहि) = प्रकर्षेण गतिवाला हो । इस जितेन्द्रिय पुरुष के शरीर में ही तू व्याप्तिवाला हो। (नृभिः) = उन्नतिपथ पर चलानेवाले मनुष्यों से तू (येमान:) = नियम्यमान होता है। इनके सामने निरन्तर आपके बढ़ने की भावना होती है, सो ये सोम का रक्षण करते हैं । (अद्रिभिः सुतः) = प्रभु के उपासकों से यह अपने अन्दर उत्पन्न किया जाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण के लिये 'जितेन्द्रियता, उन्नतिपथ पर चलना व प्रभु का उपासन' साधन बनते हैं ।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सर्वोत्पादक ! भवान् (इन्द्रस्य) कर्मयोगिनः (कुक्षा) अन्तःकरणे (याहि) गच्छतु कथम्भूतः (अद्रिभिः, सुतः) चित्तवृत्तिभिः साक्षात्कृतः (नृभिः, येमानः) संयमिनां लक्ष्यीभूतश्च ॥१८॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - O Soma spirit of divinity, pursued in practice by men and realised in name and presence through senses, mind and intelligence of the yogis, come and abide in the heart core of the soul.
