प्र सु॑वा॒नो अ॑क्षाः स॒हस्र॑धारस्ति॒रः प॒वित्रं॒ वि वार॒मव्य॑म् ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
pra suvāno akṣāḥ sahasradhāras tiraḥ pavitraṁ vi vāram avyam ||
पद पाठ
प्र । सु॒वा॒नः । अ॒क्षा॒रिति॑ । स॒हस्र॑ऽधारः । ति॒रः । प॒वित्र॑म् । वि । वार॑म् । अव्य॑म् ॥ ९.१०९.१६
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:109» मन्त्र:16
| अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:6
| मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:16
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सहस्रधारः) अनन्तसामर्थ्ययुक्त परमात्मा (सुवानः) साक्षात्कार किया हुआ (विवारं, अव्यं, तिरः) आवरण को तिरस्कार करके (पवित्रं) पवित्र अन्तःकरण को (अक्षाः) अपने ज्ञान के प्रवाह से सिञ्चन करता है ॥१६॥
भावार्थभाषाः - जब तक मनुष्य में अज्ञान बना रहता है तब तक वह परमात्मा का साक्षात्कार कदापि नहीं कर सकता, इसलिये जिज्ञासु को आवश्यक है कि वह परमात्मा के स्वरूप को ढकनेवाले अज्ञान का नाश करके परमात्मदर्शन करे। अज्ञान, अविद्या तथा आवरण ये सब पर्य्याय शब्द हैं ॥१६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
पवित्र, वार, अव्य
पदार्थान्वयभाषाः - (सुवानः) = शरीर में प्रेरित किया जाता हुआ यह सोम (सहस्त्रधारः) = हजारों प्रकार से धारण करनेवाला है । यह सोम (पवित्रम्) = पवित्र हृदय वाले पुरुष को, (वारम्) = वासनाओं के निवारण करनेवाले को (अव्यम्) = रक्षकों मैं उत्तम को (तिरः) = रुधिर में तिरोहित रूप से (प्र वि अक्षा:) = प्रकर्षेण विशेष रूप से प्राप्त होता है । रुधिर में व्याप्त हुआ हुआ यह सोम सम्पूर्ण शरीर को बल प्राप्त कराता है । और अंग-प्रत्यंग का उत्तमता से धारण करता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम पवित्र हृदय वाले, वासनाओं का वारण करनेवाले, रक्षकों में उत्तम पुरुष को प्राप्त होता है। यह रुधिर में तिरोहित रूप से रहता हुआ शरीर को हजारों प्रकार से धारण करता है ।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सहस्रधारः) अनन्तसामर्थ्ययुक्तः परमात्मा (सुवानः) साक्षात्कृतः (विवारम्, अव्यं, तिरः) आवरणं तिरस्कृत्य (पवित्रम्) पूतान्तःकरणं (प्र, अक्षाः) स्वज्ञानप्रवाहेण सिञ्चति ॥१६॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - The Soma spirit of divinity realised and exalted by the celebrant, streaming in a thousand showers, reaches and sanctifies the pure, protected and sanctified heart of its cherished devotee.
