पिब॑न्त्यस्य॒ विश्वे॑ दे॒वासो॒ गोभि॑: श्री॒तस्य॒ नृभि॑: सु॒तस्य॑ ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
pibanty asya viśve devāso gobhiḥ śrītasya nṛbhiḥ sutasya ||
पद पाठ
पिब॑न्ति । अ॒स्य॒ । विश्वे॑ । दे॒वासः॑ । गोभिः॑ । श्री॒तस्य॑ । नृऽभिः॑ । सु॒तस्य॑ ॥ ९.१०९.१५
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:109» मन्त्र:15
| अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:5
| मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:15
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (नृभिः, सुतस्य) संयमी पुरुषों द्वारा साक्षात्कार किया हुआ (गोभिः, श्रीतस्य) जो ज्ञानवृत्तियों से दृढ़ अभ्यास किया गया है, (अस्य) उससे परमात्मा के आनन्द को (विश्वे, देवासः) सम्पूर्ण विद्वान् (पिबन्ति) पान करते हैं ॥१५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा का आनन्द इन्द्रियसंयम द्वारा दृढ़ अभ्यास के विना कदापि नहीं मिल सकता, इसलिये पुरुष को चाहिये कि वह श्रवण, मनन तथा निदिध्यासन द्वारा दृढ़ अभ्यास करके परमात्मा के आनन्द को लाभ करें ॥१५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
गोभिः श्रीतस्य
पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वे) = सब (देवासः) = देववृत्ति के पुरुष ही (अस्य पिबन्ति) = इस सोम का शरीर में पान करते हैं। सोमरक्षण के लिये देववृत्ति अतिशयेन सहायक होती है। सुरक्षित सोम ही उन्हें 'देव' बनाता है। शरीरस्थ इन्द्रियाँ भी देव कहलाती हैं, ये भी इस सोम का पान करती हुई ही शक्तिशाली बनती हैं। ये देव उस सोम का पान करते हैं जो (गोभिः श्रीतस्य) = ज्ञान की वाणियों के द्वारा परिपक्व होता है [श्रि पाके] । स्वाध्याय में लगे रहने से सोम शरीर में सुरक्षित रहता है और ठीक प्रकार से इसका परिपाक होता है । (नृभिः सुतस्य) = यह उन्नतिपथ पर चलनेवाले मनुष्यों से उत्पन्न किया जाता है । सदा आगे और आगे बढ़नेवाले पुरुष ही इसको अपने शरीर में उत्पन्न करके परिपक्व करते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- स्वाध्याय में लगे रहना व उन्नति के मार्ग पर बढ़ना ही सोमरक्षण का साधन हो जाता है । सब देव इस सोम का पान करते हैं।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (नृभिः, सुतस्य) संयमपुरुषैः साक्षात्कृतस्य (गोभिः, श्रीतस्य) ज्ञानवृत्त्या दृढाभ्यस्तस्य (अस्य) अस्य परमात्मन आनन्दं (विश्वे, देवासः) सर्वे विद्वांसः (पिबन्ति) अनुभवन्ति ॥१५॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - All the divine nobilities and brilliancies of the world drink of this soma sweetness of divine joy realised by leading lights of humanity and exalted with the beauty and grace of art and imagination.
