बिभ॑र्ति॒ चार्विन्द्र॑स्य॒ नाम॒ येन॒ विश्वा॑नि वृ॒त्रा ज॒घान॑ ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
bibharti cārv indrasya nāma yena viśvāni vṛtrā jaghāna ||
पद पाठ
बिभ॑र्ति । चारु॑ । इन्द्र॑स्य । नाम॑ । येन॑ । विश्वा॑नि । वृ॒त्रा । ज॒घान॑ ॥ ९.१०९.१४
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:109» मन्त्र:14
| अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:4
| मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:14
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रस्य) परमात्मा कर्मयोगी के (चारु, नाम) सुन्दर शरीर को (बिभर्ति) निर्माण करता है, (येन) जिससे वह (विश्वानि) सम्पूर्ण (वृत्रा) अज्ञान (जघान) नाश करता है ॥१४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का तात्पर्य यह है कि यद्यपि स्थूल, सूक्ष्म तथा कारण ये तीनों प्रकार के शरीर सब जीवों को प्राप्त हैं, परन्तु कर्मयोगी के सूक्ष्मशरीर में परमात्मा एक प्रकार का दिव्यभाव उत्पन्न कर देता है, जिससे अज्ञान का नाश और ज्ञान की वृद्धि होती है, इस भाव से मन्त्र में कर्मयोगी के शरीर को बनाना लिखा है ॥१४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
प्रभु नाम स्मरण व वासना विनाश
पदार्थान्वयभाषाः - शरीर में सोम के रक्षण को करनेवाला पुरुष (इन्द्रस्य) = उस परमैश्वर्यशाली सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभु के (चारु नाम) = सुन्दर कल्याणकर नाम को (बिभर्ति) = धारण करता है । वस्तुतः यह नाम स्मरण ही हमें सोमरक्षण के योग्य बनाता है। (येन) = जिस प्रभु के नाम स्मरण के द्वारा (विश्वानि) = सब (वृत्रा) = ज्ञान पर आवरण के रूप में आ जानेवाली वासनाओं को (जघान) = नष्ट करता है। नाम स्मरण से वासनाएँ नष्ट होती हैं, वासना विनाश से सोम का रक्षण होता है, सोमरक्षण से प्रभु दर्शन होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- 'प्रभु नाम स्मरण' सब वासनाओं के विनाश का साधन बनता है ।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - स परमात्मा (इन्द्रस्य) कर्मयोगिनः (चारु) सुन्दरं (नाम) शरीरं (बिभर्ति) निर्माति (येन) येन शरीरेण (विश्वानि) सकलानि (वृत्रा) अज्ञानानि (जघान) कर्मयोगी नाशयति ॥१४॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - That Soma spirit of beauteous and blissful divinity bears the name of Indra, power of omnipotence, by virtue of which it overcomes and destroys all the darkness and evil of the world.
