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पव॑स्व सोम॒ क्रत्वे॒ दक्षा॒याश्वो॒ न नि॒क्तो वा॒जी धना॑य ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pavasva soma kratve dakṣāyāśvo na nikto vājī dhanāya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पव॑स्व । सो॒म॒ । क्रत्वे॑ । दक्षा॑य । अश्वः॑ । न । नि॒क्तः । वा॒जी । धना॑य ॥ ९.१०९.१०

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:109» मन्त्र:10 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:20» मन्त्र:10 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:10


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सोमगुणसम्पन्न परमात्मन् ! (क्रत्वे) विज्ञान के लिये (दक्षाय) चातुर्य्यप्राप्ति के लिये (अश्वः, न) विद्युत्समान (निक्तः) वेगवान् (वाजी) बलस्वरूप परमात्मन् (धनाय) धन के लिये (पवस्व) पवित्र करें ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार विद्युत् प्रत्येक पदार्थ को देदीप्यमान करता और सब पदार्थों का प्रकाशक तथा उद्दीपक है, इसी प्रकार परमात्मा सबको उद्बोधन करके अपने-अपने कर्मों में प्रवृत करता है और कर्मयोगी पुरुष को सदैव धन का लाभ होता है ॥१०॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रज्ञान- बल-ऐश्वर्य

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सोम) = वीर्य! तू (क्रत्वे) = प्रज्ञान के लिये व (दक्षाय) = बल के लिये (पवस्व) = प्राप्त हो । तेरे रक्षण से ही प्रज्ञान व बल में वृद्धि होती है । (अश्वः न) = तू इस जीवन संग्राम में विजय प्राप्ति के लिये अश्व के समान है। (निक्तः) = शुद्ध किया हुआ तू वासनाओं से मलिन न किया जाता हुआ (वाजी) = शक्तिशाली होता है, इस जीवन संग्राम में हमें विजयी बनाता है और (धनाय) = सब अन्नमय आदि कोशों के धन के लिये होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम हमें प्रज्ञान, बल व ऐश्वर्यों को प्राप्त कराता है। जीवन संग्राम में विजयी बनाता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (क्रत्वे) विज्ञानाय (दक्षाय) चातुर्याय च (निक्तः) वेगवान् (अश्वः, न) विद्युदिव (वाजी) बलस्वरूपो भवान् (धनाय) धनार्थं (पवस्व) मां पुनातु ॥१०॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, as victor of life and divine glory, flow, radiate and inspire us like energy itself controlled and consecrated for creative and productive holy work, expert technique and the production and achievement of wealth.