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येना॒ नव॑ग्वो द॒ध्यङ्ङ॑पोर्णु॒ते येन॒ विप्रा॑स आपि॒रे । दे॒वानां॑ सु॒म्ने अ॒मृत॑स्य॒ चारु॑णो॒ येन॒ श्रवां॑स्यान॒शुः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yenā navagvo dadhyaṅṅ aporṇute yena viprāsa āpire | devānāṁ sumne amṛtasya cāruṇo yena śravāṁsy ānaśuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

येन॑ । नव॑ऽग्वः । द॒ध्यङ् । अ॒प॒ऽऊ॒र्णु॒ते । येन॑ । विप्रा॑सः । आ॒पि॒रे । दे॒वाना॑म् । सु॒म्ने । अ॒मृत॑स्य । चारु॑णः । येन॑ । श्रवां॑सि । आ॒न॒शुः ॥ ९.१०८.४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:108» मन्त्र:4 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:17» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (येन) जिस तुम्हारे आनन्द से (नवग्वः) नवीन पुरुष (दध्यङ्) ध्यानी लोग (अपोर्णुते) सदुपदेशों द्वारा लोगों को सुरक्षित करते हैं, (येन) जिससे (विप्रासः) मेधावी लोग (आपिरे) प्राप्त होते हैं, (देवानाम्, सुम्ने, चारुणः, अमृतस्य) विद्वानों के अमृतरूपी सुख में जिज्ञासु विराजमान होता है, (येन) जिससे (श्रवांसि) यशों को (आनशुः) भोगता है, वह एकमात्र आप ही का आनन्द है ॥४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा ही अपने अनादिसिद्ध ज्ञान द्वारा लोगों को सन्मार्ग की प्रेरणा करता, वही सद्विद्यारूपी वेदों से सबका सुधार करता और वही सबको आनन्द प्रदान करनेवाला है ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

चारुणः अमृतस्य

पदार्थान्वयभाषाः - यह सोम वह है (येन) = जिसके द्वारा (नवग्वः) = स्तुत्य गतिवाला [नु स्तुतौ] (दध्यड्) = ध्यानशील पुरुष (अप ऊर्णुते) = अज्ञान के आवरण को दूर करता है। (येन) = जिसके द्वारा (विप्रासः) = अपना विशेष रूप से पूरण करनेवाले लोग (आपिरे) = उस प्रभु को प्राप्त करते हैं। यह सोम वह है (येन) = जिसके द्वारा (देवानां सुम्ने) = देववृत्ति के पुरुषों के प्रभु स्तवन के होने पर [ सुम्न = Hymn ] (चारुणः अमृतस्य) = अत्यन्त कल्याणकर अमृतत्व को (आनशुः) = प्राप्त करते हैं तथा जिससे श्रवांसि ज्ञानों को प्राप्त करते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण से अज्ञान का आवरण दूर होता है, प्रभु की प्राप्ति होती है, प्रभु स्तवन करते हुए हम मोक्ष को प्राप्त करते हैं, ज्ञानवृद्धि का यह सोमरक्षण कारण बनता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (येन) येन तवानन्देन (नवग्वः) नवाः (दध्यङ्) ध्यानिजनाः (अपोर्णुते) सदुपदेशेन लोकान् सुस्थापयन्ति (येन) येन च (विप्रासः) मेधाविनः (आपिरे) प्राप्यन्ते (येन) येन च (देवानाम्) विदुषां (चारुणः, अमृतस्य, सुम्ने) अमृतायेव चारुसुखाय जिज्ञासुर्विराजते, येन च (श्रवांसि) यशांसि (आनशुः) भुञ्जन्ति स केवलं भवत एवानन्दः ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma is that spirit of enlightenment by which the meditative sages on way to divinity open up the path to immortality, by which the saints attain to the peace and well being worthy of divinities, and by which the lovers of immortality obtain their desired ambition and fulfilment.