वांछित मन्त्र चुनें

सोम॑ उ षुवा॒णः सो॒तृभि॒रधि॒ ष्णुभि॒रवी॑नाम् । अश्व॑येव ह॒रिता॑ याति॒ धार॑या म॒न्द्रया॑ याति॒ धार॑या ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

soma u ṣuvāṇaḥ sotṛbhir adhi ṣṇubhir avīnām | aśvayeva haritā yāti dhārayā mandrayā yāti dhārayā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सोमः॑ । ऊँ॒ इति॑ । सु॒वा॒नः । सो॒तृऽभिः । अधि॑ । स्नुऽभिः॑ । अवी॑नाम् । अश्व॑याऽइव । ह॒रिता॑ । या॒ति॒ । धार॑या । म॒न्द्रया॑ । या॒ति॒ । धार॑या ॥ ९.१०७.८

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:107» मन्त्र:8 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:13» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:8


0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - आपको साक्षात्कार करनेवाले (सोतृभिः) उपासकों द्वारा (अधि, सुवानः) साक्षात्कार को प्राप्त हुए (सोमः) सर्वोत्पादक आप (अवीनाम्) रक्षायुक्त वस्तुओं के (ष्णुभिः) रक्षायुक्त साधनों से (अश्वया) विद्युत् के (इव) समान (हरिता) कर्मों का अधिष्ठाता परमात्मा (मन्द्रया, धारया) आनन्दित करनेवाली धारा से (याति) उपासकों के अन्तःकरण को प्राप्त होता है ॥८॥
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार विद्युत् अपनी शक्तियों द्वारा नाना कार्य्यों का हेतु होती है, इसी प्रकार परमात्मा अपने ज्ञान-कर्मरूपी शक्ति द्वारा सब ब्रह्माण्डों की रचना का हेतु है ॥८॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अश्वयः हरिता मन्द्रया

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमः) = वीर्य (उ) = निश्चय से (सोतृभिः) = सोम उत्पादक पुरुषों से (षुवाणः) = उत्पन्न किया जाता हुआ व शरीर में ही प्रेरित किया जाता हुआ (अवीनां) = रक्षकों के (स्स्रुभिः) = शिखरों के उद्देश्य से रक्षकों को ‘स्वास्थ्य नैर्मल्य व बुद्धि की तीव्रता के शिखरों पर पहुँचाने के उद्देश्य से (अश्वया) = सदा कर्मों में व्याप्त करनेवाली [अक्ष व्याप्तौ] तथा (हरिता) = अज्ञानान्धकरा का हरण करनेवाली (धारया) = धारण शक्ति से (याति) = प्राप्त होता है। सुरक्षित सोम सशक्त बनाकर हमें कर्मव्याप्त करता है, तथा ज्ञानादि को दीप्त करके तीव्रबुद्धि बनाता है और अज्ञानान्धकार को समाप्त करता है [ह्व हरणे] इस प्रकार ये हमें शरीर में स्वस्थ मन में निर्मल व बुद्धि में तीव्र बनाता है । अन्ततः यह (मन्द्रया) = आनन्द को देनेवाली (धारया) = धारणशक्ति के साथ हमें याति प्राप्त होता है। यह सोम नीरोगता व अमृतत्व को प्राप्त कराके हमें आनन्दित करता है, प्रभु प्राप्ति का भी यही साधन होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम की धारा हमें सशक्त बनाकर कर्मों में व्याप्त करती है [अश्वया], यह तीव्रबुद्धि को देकर अज्ञानान्धकार का ही हरण करती है [हरिता], तथा नीरोगता व प्रभु प्राप्ति द्वारा आनन्दित करती है [मन्द्रया] एवं यह रक्षकों को तीन शिखरों पर पहुँचाती है।
0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोतृभिः) साक्षात्कर्तृभिरुपासकैः (अधिसुवानः) साक्षात्कृतः (सोमः) सर्वोत्पादकः भवान् (अवीनां) रक्षायुक्तवस्तूनां (ष्णुभिः) रक्षायुक्तसाधनैः (अश्वया, इव) विद्युदिव (हरिता) कर्माधिष्ठाता परमात्मा (मन्द्रया, धारया) आह्लादकधारया (याति) स्वोपासकान्तःकरणे प्रविशति ॥८॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma, invoked by celebrants, manifests with blissful inspiring powers of protection and promotion and, saving, watching, fascinating, goes forward, rushing, compelling, in an impetuous stream like waves of energy, and it also goes forward by a stream of mild motion, soothing and refreshing.