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सोमो॑ मी॒ढ्वान्प॑वते गातु॒वित्त॑म॒ ऋषि॒र्विप्रो॑ विचक्ष॒णः । त्वं क॒विर॑भवो देव॒वीत॑म॒ आ सूर्यं॑ रोहयो दि॒वि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

somo mīḍhvān pavate gātuvittama ṛṣir vipro vicakṣaṇaḥ | tvaṁ kavir abhavo devavītama ā sūryaṁ rohayo divi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सोमः॑ । मी॒ढ्वान् । प॒व॒ते॒ । गा॒तु॒वित्ऽत॑मः । ऋषिः॑ । विप्रः॑ । वि॒ऽच॒क्ष॒णः । त्वम् । क॒विः । अ॒भ॒वः॒ । दे॒व॒ऽवीत॑मः । आ । सूर्य॑म् । रो॒ह॒यः॒ । दि॒वि ॥ ९.१०७.७

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:107» मन्त्र:7 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:13» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:7


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (त्वम्) आप (सोमः) सर्वोत्पादक हैं, (मीढ्वान्) सब कामनाओं के पूर्ण करनेवाले (गातुवित्तमः) सर्वोपरि मार्ग के दिखलानेवाले हैं, (ऋषिः) “च्छति गच्छति सर्वत्र प्राप्नोतीति ऋषिः”=जो अपनी व्यापकशक्ति से सर्वत्र विद्यमान हो उसका नाम यहाँ ऋषि है। (विप्रः) मेधावी (विचक्षणः) सर्वोपरि विज्ञानी हैं, (कविः) सर्वज्ञ (अभवः) हैं, (देववीतमः) सब विद्वानों के परमप्रिय तथा (दिवि) द्युलोक में (सूर्यम्) सूर्य का (आरोहयः) प्रादुर्भाव करते हैं, उक्त गुणशाली आप उपासकों के अन्तःकरणों को (पवते) पवित्र करते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का आशय यह है कि परमात्मा ज्ञानादि गुणों द्वारा उपासक के हृदय को दीप्तिमान् बनाते हैं ॥७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

विप्रः विचक्षणः

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमः) = वीर्य (मीढ्वान्) = अंग-प्रत्यंग में शक्ति का सेचन करनेवाला होता हुआ (पवते) = प्राप्त होता है। यह (गातुवित्तमः) = सर्वोत्तम मार्गदर्शक है । सोमरक्षण वाला पुरुष सदा मार्ग पर चलता है। (ऋषिः) = यह तत्त्वद्रष्टा है, हमें सूक्ष्म बुद्धि बनाकर तत्त्व का दर्शन कराता है। (विप्रः) = विशेषरूप से पूरण करनेवाला है और (विचक्षणः) = विशिष्ट द्रष्टा ध्यान करनेवाला [looks after] है । हे सोम ! (त्वं) = तू (कविः अभवः) = क्रान्तदर्शी होता है। (देववीतम:) = अतिशयेन दिव्य गुणों को प्राप्त करानेवाला है। तू ही दिवि हमारे मस्तिष्क रूप द्युलोक में (सूर्यम्) = ज्ञानसूर्य को (आरोहयः) = आरूढ करता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम ही शक्ति का सेचन करता हुआ, सब कमियों को दूर करता हुआ, हमें प्रशस्त ज्ञान वाला बनाता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (त्वम्) भवान् (सोमः) सर्वोत्पादकः (मीढ्वान्) सर्वकामनापूरकः (गातुवित्तमः) सर्वोपरिमार्गस्य दर्शयिता (ऋषिः) स्वव्यापकशक्त्या सर्वत्र विद्यमानः (विप्रः) मेधावी (विचक्षणः) सर्वोपरिज्ञानवान् (कविः) सर्वज्ञः (अभवः) अस्ति (देववीतमः) विदुषां प्रियतमः (दिवि) द्युलोके च (सूर्यं, आ, रोहयः) सूर्यं प्रादुर्भावयति, एवं भवान् स्वभक्तान्तःकरणं (पवते) पुनाति ॥७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma, virile and generous giver of fulfilment, omniscient master of the ways of existence, supreme creative seer, vibrant super-soul, all watching and knowing, flows and purifies all. O Soma, you are the poetic creator, dearest friend of the divines, and it is you who generate and raise the sun over to the heaven of light.