वांछित मन्त्र चुनें

पु॒ना॒नः सो॑म॒ धार॑या॒पो वसा॑नो अर्षसि । आ र॑त्न॒धा योनि॑मृ॒तस्य॑ सीद॒स्युत्सो॑ देव हिर॒ण्यय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

punānaḥ soma dhārayāpo vasāno arṣasi | ā ratnadhā yonim ṛtasya sīdasy utso deva hiraṇyayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पु॒ना॒नः । सो॒म॒ । धार॑या । अ॒पः । वसा॑नः । अ॒र्ष॒सि॒ । आ । र॒त्न॒ऽधाः । योनि॑म् । ऋ॒तस्य॑ । सी॒द॒सि॒ । उत्सः॑ । दे॒व॒ । हि॒र॒ण्ययः॑ ॥ ९.१०७.४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:107» मन्त्र:4 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:12» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:4


0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (अपः, पुनानः) हमारे कर्मों को पवित्र करते हुए आप (वसानः) हमारे अन्तकरण में निवास करते हुए (धारया) आनन्द की वृष्टि से (अर्षसि) हमको प्राप्त होते हैं। (रत्नधाः) आप सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों के धारण करनेवाले हैं, (ऋतस्य, योनिम्) सत्यरूपी यज्ञ के स्थान को (आसीदसि) प्राप्त होते हैं। (देव) हे दिव्यस्वरूप परमात्मन् ! (उत्सः) आप सबका निवासस्थान और (हिरण्ययः) ज्योतिस्वरूप हैं। “अप इति कर्मनामसु पठितम्”, नि. २।१ ॥४॥
भावार्थभाषाः - वह ज्योतिस्वरूप परमात्मा अपनी दिव्य ज्योति से उपासक के अज्ञान को छिन्न-भिन्न करके उसमें विमल ज्ञान का प्रकाश करता है ॥४॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

हिरण्ययः उत्सः

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सोम) = वीर्य ! (पुनानः) = पवित्र किया जाता हुआ तू (धारया) = अपनी धारण शक्ति से (अपः वसानः) = कर्मों को धारण करता हुआ (अर्षसि) = प्राप्त होता है । सोम से शरीर में स्फूर्ति व क्रियाशीलता को जन्म मिलता है । (रत्नधाः) = सब रमणीय तत्त्वों का धारण करनेवाला, हे सोम ! तू (ऋतस्य योनिम्) = ऋत के उत्पत्ति स्थान प्रभु में (आसीदसि) = आसीन होता है। हे (देव) = [प्रकाशमये] = सोम ! तू (हिरण्ययः उत्सः) = ज्योतिर्मय स्रोत है। तेरे से ज्योति का प्रवाह निःसृत होता है। वस्तुतः यह सोम ही सम्पूर्ण ज्ञान को उत्पन्न करनेवाला है, यही तो बुद्धि को सूक्ष्म बनाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम 'कर्मशीलता' को प्राप्त कराता है। सब रत्नों का धारण करता हुआ प्रभु को प्राप्त कराता है। यह ज्ञान का स्रोत है।
0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सर्वोत्पादक ! (अपः, पुनानः) अस्मत्कर्माणि पावयन् (वसानः) अन्तःकरणे च निवसन् (धारया) आनन्दवृष्ट्या (अर्षसि) अस्मान् प्राप्नोति (रत्नधाः) भवान् सकलैश्वर्यधारकः (ऋतस्य, योनिं) सत्यरूपयज्ञस्थानं (आसीदसि) एत्य प्राप्नोति (देव) हे दिव्यस्वरूप ! (उत्सः) सर्वाश्रयो भवान् (हिरण्ययः) ज्योतिःस्वरूपश्च ॥४॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, pure and purifying our thought, will and actions, abiding in the heart, you move and flow on in our consciousness. Bearing treasures of jewels, pray come and sit on the seat of yajna vedi and our sense of truth and eternal law. Indeed, O lord refulgent, you are the fountain head of life’s golden treasures.