वांछित मन्त्र चुनें

पव॑माना असृक्षत प॒वित्र॒मति॒ धार॑या । म॒रुत्व॑न्तो मत्स॒रा इ॑न्द्रि॒या हया॑ मे॒धाम॒भि प्रयां॑सि च ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pavamānā asṛkṣata pavitram ati dhārayā | marutvanto matsarā indriyā hayā medhām abhi prayāṁsi ca ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पव॑मानाः । अ॒सृ॒क्ष॒त॒ । प॒वित्र॑म् । अति॑ । धार॑या । म॒रुत्व॑न्तः । म॒त्स॒राः । इ॒न्द्रि॒याः । हयाः॑ । मे॒धाम् । अ॒भि । प्रयां॑सि । च॒ ॥ ९.१०७.२५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:107» मन्त्र:25 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:16» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:25


0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (धारया) अपनी कृपामयी वृष्टि से (पवित्रम्) पवित्र अन्तःकरण को (अभि) लक्ष्य रखकर (अति, असृक्षत) तुम्हारा साक्षात्कार किया जाता है। (पवमानाः) तुम्हारे पवित्र स्वभाव (मरुत्वन्तः) जो विद्वानों द्वारा साक्षात्कार किये गये हैं, (मत्सराः) आनन्ददायक हैं, (इन्द्रियाः) कर्मयोगियों के लिये हितकर हैं, (हयाः) गतिशील हैं (च) और (मेधाम्) बुद्धि तथा (प्रयांसि) ऐश्वर्य्यों को देनेवाले जो आपके स्वभाव हैं, उनसे आप हमको पवित्र करें ॥२५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के अपहतपाप्मादि स्वभाव उपासना द्वारा मनुष्य को शुद्ध करते हैं, इसलिये मनुष्य को उसकी उपासना में सदा रत रहना चाहिये ॥२५॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

मरुत्वन्तः मत्सराः

पदार्थान्वयभाषाः - (पवित्रम्) = पवित्र हृदय वाले पुरुष (धारया) = अपनी धारणशक्ति से (पवमाना:) = सर्वथा रोगकृमि आदि शत्रुओं के विनाश से पवित्र करते हुए (अति असृक्षत) = अतिशयेन सृष्ट होते हैं। हम वासनाओं से ऊपर उठकर ही सोम का रक्षण कर सकते हैं। सुरक्षित होकर ये हमारे जीवन को पूर्ण पवित्र बनायेंगे। ये सोम (मरुत्वन्तः) = प्रशस्त प्राणों वाले हैं, प्राणशक्ति का वर्धन करते हैं । (मत्सराः) = आनन्द का संचार करनेवाले हैं। (इन्द्रियाः) = बल को देनेवाले हैं [इन्द्रियं वीर्यं बलम्] । (हया:) = हमें गतिशील बनाते हैं। (मेधाम् अभि) = बुद्धि की ओर ले चलते हैं (च) = और (प्रयांसि) = उत्कृष्ट यत्नशीलता की ओर [प्रयस्] अथवा सात्त्विक अन्नों की ओर । यह सोम हमें सात्त्विक वृत्तिवाला बनाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- पवित्र हृदय वाले पुरुष में सुरक्षित हुआ हुआ सोम प्राणों को प्रशस्त बनाता है, आनन्द का संचार करता है, बल को देता है, हमें गतिशील बनाता है, बुद्धि और श्रमशील वृत्ति को प्राप्त कराता है ।
0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (धारया) स्वकृपामयवृष्ट्या (पवित्रम्) पवित्रान्तःकरणं (अभि) अभिलक्ष्य (अति, असृक्षत) त्वत्साक्षात्कारः क्रियते (पवमानाः) तव पवित्रं स्वभावाः (मरुत्वन्तः) विद्वद्भिः साक्षात्कृताः (मत्सराः) आनन्दप्रदाः (इन्द्रियाः) कर्मयोगिहिताः (हयाः) गतिशीलाः (च) तथा (मेधां) बुद्धिम् (प्रयांसि) ऐश्वर्यं च ददतः, तैः पवस्व ॥२५॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Purifying, energising and inspiring currents of ecstasy and nourishment for the senses, will, intellect and imagination flow by stream and shower at the speed of winds to the holy heart of the sagely celebrant.