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मृ॒जा॒नो वारे॒ पव॑मानो अ॒व्यये॒ वृषाव॑ चक्रदो॒ वने॑ । दे॒वानां॑ सोम पवमान निष्कृ॒तं गोभि॑रञ्जा॒नो अ॑र्षसि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mṛjāno vāre pavamāno avyaye vṛṣāva cakrado vane | devānāṁ soma pavamāna niṣkṛtaṁ gobhir añjāno arṣasi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मृ॒जा॒नः । वारे॑ । पव॑मानः । अ॒व्यये॑ । वृषा॑ । अव॑ । च॒क्र॒दः॒ । वने॑ । दे॒वाना॑म् । सो॒म॒ । प॒व॒मा॒न॒ । निः॒ऽकृ॒तम् । गोभिः॑ । अ॒ञ्जा॒नः । अ॒र्ष॒सि॒ ॥ ९.१०७.२२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:107» मन्त्र:22 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:16» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:22


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मृजानः) आप सबको शुद्ध करनेवाले हैं (अव्यये, वारे) रक्षायुक्त वरणीय पुरुष को (पवमानः) पवित्र करनेवाले (वृषा) सब कामनाओं की वर्षा करनेवाले आप (वने) सब ब्रह्माण्डों में (अव, चक्रदः) शब्दायमान हो रहे हैं। (सोम) हे सर्वोत्पादक (पवमान) सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (देवानाम्) विद्वानों के (निष्कृतम्) संस्कृत अन्तःकरण को (अर्षसि) प्राप्त होते हैं, आप कैसे हैं (गोभिः) इन्द्रियों द्वारा ज्ञानरूपी वृत्तियों से (अञ्जानः) साक्षात्कार किये जाते हैं ॥२२॥
भावार्थभाषाः - अभ्युदय और निःश्रेयस का हेतु एकमात्र परमात्मा ही है, इसलिये उसी की उपासना करनी चाहिये ॥२२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पवमान वृषा

पदार्थान्वयभाषाः - (वारे) = वासनाओं का निवारण करनेवाले (अव्यये) = [अवि अय] विषयों में न जानेवाले पुरुष में (मृजानः) = शुद्ध किया जाता हुआ (पवमानः) = हमारे जीवन को पवित्र करनेवाला यह सोम (वृषा) = हमारे जीवन में शक्ति का सेचन करता है। तथा (वने) = उपासक में (अवचक्रदः) = वासनाओं व काम आदि शत्रुओं को दूर करके रुलानेवाला होता है [क्रदि रोदने] । काम आदि शत्रुओं को रहने का स्थान नष्ट करके यह रुलाता है। हे सोम वीर्य ! (पवमान) = पवित्र करनेवाला तू (गोभिः अञ्जानः) = ज्ञान की वाणियों से अलंकृत किया जाता हुआ (देवानां निष्कृतं) = देववृत्ति के पुरुषों के परिष्कृत हृदय में अर्षसि प्राप्त होता है, ज्ञान की वाणियों के द्वारा शरीर में ही सुरक्षित हुआ हुआ सोम शरीर की शोभा का कारण बनता है। यह शरीर में तभी स्थिर होता है जब कि हम हृदय को पवित्र व वासनाशून्य बनाने के लिये यत्नशील हों ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-सोम काम आदि शत्रुओं को स्थानभ्रष्ट करके रुलाता है। यह पवित्र हृदय पुरुषों में ही स्थिर होता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मृजानः) भवान् सर्वेषां शोधकः (अव्यये, वारे) रक्ष्यं वरणीयं पुरुषं (पवमानः) पवित्रयन् (वृषा) सर्वकामान् वर्षुकः (वने) सम्पूर्णे ब्रह्माण्डे (अव, चक्रदः) शब्दायसे (सोम) हे सर्वोत्पादक ! (पवमान) सर्वपावक ! (देवानाम्) विदुषां (निष्कृतं) संस्कृतमन्तःकरणं (अर्षसि) प्राप्नोति (गोभिः) ज्ञानवृत्तिभिश्च (अञ्जानः) साक्षात्क्रियते भवान् ॥२२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, universal spirit of generosity, cleansing, purifying and radiating in the protected heart of the cherished celebrant, you manifest loud and bold in the deep and beautiful world of existence and, sung and celebrated with songs of adoration, you move and manifest in the holy heart of divinities, pure, purifying, vibrating.