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तवा॒हं सो॑म रारण स॒ख्य इ॑न्दो दि॒वेदि॑वे । पु॒रूणि॑ बभ्रो॒ नि च॑रन्ति॒ मामव॑ परि॒धीँरति॒ ताँ इ॑हि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tavāhaṁ soma rāraṇa sakhya indo dive-dive | purūṇi babhro ni caranti mām ava paridhīm̐r ati tām̐ ihi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तव॑ । अ॒हम् । सो॒म॒ । र॒र॒ण॒ । स॒ख्ये । इ॒न्दो॒ इति॑ । दि॒वेऽदि॑वे । पु॒रूणि॑ । ब॒भ्रो॒ इति॑ । नि । च॒र॒न्ति॒ । माम् । अव॑ । प॒रि॒ऽधीन् । अति॑ । तान् । इ॒हि॒ ॥ ९.१०७.१९

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:107» मन्त्र:19 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:15» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:19


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप (सोम) सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (दिवेदिवे) प्रतिदिन (तव, सख्ये) तुम्हारी मैत्री में (अहं, रारण) मैं सदैव तुम्हारा स्मरण करता हूँ (बभ्रो) हे सर्वाधिकरण परमात्मन् ! (पुरूणि) बहुत (निचरन्ति) नीचभावों से जो राक्षस (माम्) मुझको पीड़ा देते हैं (तान्, परिधीन्) उन राक्षसों को (अतीहि) अतिक्रमण करके मेरी (अव) रक्षा करो ॥१९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में यह प्रार्थना की गई है कि हे परमात्मन् ! वैदिक कर्मानुष्ठान में विघ्न करनेवाले मनुष्यों से हमारी रक्षा करें, “रक्षत्यस्मादिति रक्षः, रक्ष एव राक्षसः” यहाँ राक्षस शब्द से विघ्नकारी मनुष्यों का ग्रहण है, किसी जातिविशेष का नहीं ॥१९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

चारों ओर से घेरनेवाले राक्षसों का विनाश

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सोम) = वीर्य! (अहम्) = मैं (तव) = तेरे (सख्ये) = मित्रता में (रारण) = आनन्द का अनुभव करता हूँ । हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! (दिवे दिवे) = प्रतिदिन यह सख्य व आनन्द बढ़ता ही चलता है। हे (बभ्रो) = हमारा धारण करनेवाले सोम ! (माम्) = मुझे (पुरूणि) = बहुत राक्षसी भाव (नि अव चरन्ति) = नीचे की ओर ले जाते हैं। (तान् परिधीन्) = उन चारों ओर से घेरा डालनेवाले इन राक्षसी भावों को (अति इहि) = तू पार करनेवाला हो। इन राक्षसी भावों से तू ही मुझे ऊपर उठानेवाला हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम के रक्षण में ही आनन्द है, यही हमें राक्षसी भावों से पार ले जाता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप (सोम) सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (दिवेदिवे) प्रत्यहं (तव, सख्ये) तव मैत्रीविषये (अहम्, रारण) त्वां स्मरामि (बभ्रो) हे सर्वाधार ! (पुरूणि) बहूनि (निचरन्ति) नीचकर्माणि कुर्वन्ति ये राक्षसाः (तान्, परिधीन्) तान् राक्षसान् (अतीहि) अभिभावय (अव) मां च रक्ष ॥१९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, light of life and universal joy of existence, I rejoice in your friendly company day in and day out. O mighty bearer sustainer of the universe, a host of negativities surround me, pray break through their bounds and come and save me.