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आ ह॑र्य॒तो अर्जु॑ने॒ अत्के॑ अव्यत प्रि॒यः सू॒नुर्न मर्ज्य॑: । तमीं॑ हिन्वन्त्य॒पसो॒ यथा॒ रथं॑ न॒दीष्वा गभ॑स्त्योः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā haryato arjune atke avyata priyaḥ sūnur na marjyaḥ | tam īṁ hinvanty apaso yathā rathaṁ nadīṣv ā gabhastyoḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ । ह॒र्य॒तः । अर्जु॑ने । अत्के॑ । अ॒व्य॒त॒ । प्रि॒यः । सू॒नुः । न । मर्ज्यः॑ । तम् । ई॒म् । हि॒न्व॒न्ति॒ । अ॒पसः॑ । यथा॑ । रथ॑म् । न॒दीषु॑ । आ । गभ॑स्त्योः ॥ ९.१०७.१३

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:107» मन्त्र:13 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:14» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:13


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्जुने) कर्मों के अर्जनविषय में (अत्के) जो निरूपण किया जाता है, वह (हर्यतः) सर्वप्रिय परमात्मा (अव्यत) हमारी रक्षा करता है, (न) जैसे (सूनुः) सन्तति (मर्ज्यः) मार्जन करने योग्य होती है, इसी प्रकार (प्रियः) सर्वप्रिय परमात्मा सन्ततिस्थानीय हम लोगों की रक्षा करता है। (तमीम्) उक्त परमात्मा की (अपसः) कर्म (हिन्वन्ति) प्रेरणा करते हैं, (यथा) जिस प्रकार (गभस्त्योः) बल के समक्ष (रथम्) वेग को (नदीषु) संग्रामों में प्रेरणा करते हैं, इसी प्रकार रथरूप जीव को कर्मरूप संग्राम के अभिमुख परमात्मा प्रेरणा करता है ॥१३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का भाव यह है कि संचित कर्म, प्रारब्ध और क्रियमाण इन तीनों प्रकार के कर्मों का ज्ञाता एकमात्र परमात्मा ही है ॥१३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अर्जुने अत्के

पदार्थान्वयभाषाः - (हर्यतः) = यह कान्त सोम (अर्जुने) = श्वेतवर्ण वाले, अर्थात् शुद्ध जीवनवाले (अत्के) = निरन्तर क्रियाशील पुरुष में (आ अव्यत) = सर्वतः संवृत व रक्षित किया जाता है। शुद्ध क्रियाशील जीवन सोमरक्षण की अनुकूलता वाला है। (प्रियः) = यह प्रीति का कारण होता है। (सूनुः न) = एक बालक के समान यह (मर्ज्य:) = शोधनीय है। जैसे एक बालक को माता शुद्ध करती है, इसी प्रकार यह सोम हमारे से शुद्ध करने योग्य है । (तम्) = उस सोम को (ईम्) = निश्चय से (अपस:) = क्रियाशील लोग (यथा रथं) = [रक्षस्य योग्यम्] शरीररथ के ही यह योग्य है ऐसा मानकर नदीषु शरीरस्थ नाड़ियों में तथा (गभस्त्योः) = भुजाओं में (आहिन्वन्ति) = समन्तात् प्रेरित करते हैं । रुधिर में व्याप्त होकर यह सोम शरीरस्थ नाड़ियों में प्रवाहित होता है और क्रियाशीलता को उत्पन्न करता हुआ भुजाओं में गतिवाला होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण वही कर सकता है जो कि शुद्ध क्रियाशील जीवन का यापन करता है । क्रियाशील पुरुष ही सोम को शरीर में प्रेरित कर पाते हैं।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्जुने) कर्मणामर्जनविषयः (अत्के) यो निरूप्यते (हर्यतः) सर्वप्रियः परमात्मा (अव्यत) अस्मान् रक्षति (न) यथा (सूनुः) सन्ततिः (मर्ज्यः) मार्जनयोग्या भवति एवं (प्रियः) सर्वप्रियः परमात्मापि सन्ततिस्थानीयं मां रक्षति (तमीं) तं च (अपसः) कर्माणि (हिन्वन्ति) प्रेरयन्ति (यथा) यथा च (गभस्त्योः) बलयोः समक्षं (रथम्) वेगं (नदीषु) सङ्ग्रामेषु प्रेरयन्ति, एवं रथरूपजीवं कर्मरूपसङ्ग्रामे परमात्मा प्रेरयति ॥१३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Dear, loved and fascinating, Soma emerges in transparent unsullied form, winsome worth refinement like a child’s and inspiring as a sanative. Devotees stimulate it with holy karma, a thing beautiful and inspiring, and let it join and flow in the streams of thought and action between their intellect and emotion and their prana and apana energies.