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गोम॑न्न इन्दो॒ अश्व॑वत्सु॒तः सु॑दक्ष धन्व । शुचिं॑ ते॒ वर्ण॒मधि॒ गोषु॑ दीधरम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

goman na indo aśvavat sutaḥ sudakṣa dhanva | śuciṁ te varṇam adhi goṣu dīdharam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गोऽम॑त् । नः॒ । इ॒न्दो॒ इति॑ । अश्व॑ऽवत् । सु॒तः । सु॒ऽद॒क्ष॒ । ध॒न्व॒ । शुचि॑म् । ते॒ । वर्ण॑म् । अधि॑ । गोषु॑ । दी॒ध॒र॒म् ॥ ९.१०५.४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:105» मन्त्र:4 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:8» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् (सुदक्ष) सर्वज्ञ (सुतः) आप सर्वत्र अभिव्यक्त हैं। (नः) हमको (गोमत्) ज्ञानयुक्त (अश्ववत्) क्रियायुक्त ऐश्वर्य्य को (धन्व) प्राप्त करायें, ताकि (ते) तुम्हारे (शुचिं वर्णम्) शुद्ध स्वरूप को (अधिगोषु) मन बुद्धि आदिकों में (दीधरम्) धारण करें ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो लोग परमात्मा के शुद्धस्वरूप का ध्यान करते हैं, परमात्मा उनके ज्ञान को अपनी ज्योति से अवश्यमेव देदीप्यमान करता है ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

गोमत्-अश्ववत्

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुदक्ष) = उत्तम विकास के साधनभूत (इन्दो) = सोम ! (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ तू (नः) = हमारे लिये (गोमत्) = उत्तम ज्ञानेन्द्रियों वाले तथा (अश्ववत्) = उत्तम कर्मेन्द्रियों वाले धन को (धन्व) = प्राप्त करा । सोम इन इन्द्रियों को सशक्त बनाता है। हे सोम ! मैं (ते) = तेरे (शुचिम्) = दीप्त (वर्णम्) = आवरण को [covering] (गोषु) = ज्ञान की वाणियों के होने पर (अधि दीधरम्) = आधिक्येन धारण करता हूँ । सारे अतिरिक्त समय को स्वाध्याय में बिताता हुआ मैं सोम को शरीर में ही सुरक्षित कर पाता हूँ यह सुरक्षित सोम मेरे लिये वह आच्छादन बनाता है, जो कि मुझे रोगों का शिकार नहीं होने देता।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम हमारा यह आवरण बनता है, जो हमें रोगों से बचाकर शक्तिशाली इन्द्रियों वाला बनाता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (सुदक्ष) हे सर्वज्ञ ! (सुतः) भवान् सर्वत्राभिव्यक्तः ( नः) अस्मभ्यं (गोमत्) ज्ञानयुक्तं (अश्ववत्) क्रियायुक्तं च ऐश्वर्यम् (धन्व) उत्पादयतु येन (ते) तव (शुचिं, वर्णं) शुद्धस्वरूपं (अधिगोषु) मनोबुद्ध्यादिषु (दीधरं) धारयाम ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, refulgent spirit of divine bliss and beauty, manifest every where and realised within, commanding universal power and perfection, pray set in motion for us the flow of wealth full of lands, cows, knowledge and culture, and of horses, movement, progress and achievement. I pray bless me that I may honour and worship your pure divine presence above all, above mind and senses and above the things mind and senses are involved with.