अ॒यं दक्षा॑य॒ साध॑नो॒ऽयं शर्धा॑य वी॒तये॑ । अ॒यं दे॒वेभ्यो॒ मधु॑मत्तमः सु॒तः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
ayaṁ dakṣāya sādhano yaṁ śardhāya vītaye | ayaṁ devebhyo madhumattamaḥ sutaḥ ||
पद पाठ
अ॒यम् । दक्षा॑य । साध॑नः । अ॒यम् । शर्धा॑य । वी॒तये॑ । अ॒यम् । दे॒वेभ्यः॑ । मधु॑मत्ऽतमः । सु॒तः ॥ ९.१०५.३
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:105» मन्त्र:3
| अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:8» मन्त्र:3
| मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:3
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) वह परमात्मा जो (दक्षाय, साधनः) चातुर्य का एकमात्र साधन है, (अयम्) वह (शर्धाय) बल के लिये (मधुमत्तमः) आनन्दमय है, (अयम्) वह (देवेभ्यः) विद्वानों के लिये (सुतः) अभिव्यक्त है ॥३॥
भावार्थभाषाः - सब प्रकार की नीति का साधन एकमात्र परमात्मा है। जो विद्वान् नीतिनिपुण होना चाहते हैं, वे भी एकमात्र परमात्मा की शरण लें ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
मधुमत्तमः
पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) = यह सोम (दक्षाय) = सब प्रकार की उन्नति के लिये (साधनः) = साधन बनता है । (अयम्) = यह (शर्धाय) = रोगकृमि रूप शत्रुओं के संहार के लिये होता है, (वीतये) = यह आसुरभावों के ध्वंस के लिये होता है [वी असने] (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ यह सोम (देवेभ्यः) = देववृत्ति के पुरुषों के लिये (मधुमत्तमः) = अतिशयेन माधुर्य को प्राप्त करानेवाला होता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम 'उन्नति का साधन' है, शत्रुओं के संहार के लिये होता है, आसुरभावों को दूर करता है, अतिशयेन माधुर्य को प्राप्त कराता है।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) अयं परमात्मा (दक्षाय, साधनः) चातुर्य्यस्यैकमात्र- साधनोऽस्ति (अयम्) अयञ्च (शर्धाय) बलाय (वीतये) तृप्तये च (मधुमत्तमः)आनन्दमयः (अयं) अयञ्च (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (सुतः) अभि-व्यक्तोऽस्ति ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - This is the means to efficiency for perfection, this is for strength and success for fulfilment, and when it is realised, it is the sweetest, most honeyed experience for the divines.
