परि॒ वारा॑ण्य॒व्यया॒ गोभि॑रञ्जा॒नो अ॑र्षति । त्री ष॒धस्था॑ पुना॒नः कृ॑णुते॒ हरि॑: ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
pari vārāṇy avyayā gobhir añjāno arṣati | trī ṣadhasthā punānaḥ kṛṇute hariḥ ||
पद पाठ
परि॑ । वारा॑णि । अ॒व्यया॑ । गोभिः॑ । अ॒ञ्जा॒नः । अ॒र्ष॒ति॒ । त्री । स॒धऽस्था॑ । पु॒ना॒नः । कृ॒णु॒ते॒ । हरिः॑ ॥ ९.१०३.२
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:103» मन्त्र:2
| अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:6» मन्त्र:2
| मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:2
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (गोभिरञ्जानः) अन्तःकरण की वृत्तियों द्वारा साक्षात्कार को प्राप्त हुआ परमात्मा (अव्यया) अपनी रक्षायुक्त शक्ति से (वाराणि) वरणयोग्य अर्थात् पात्रता को प्राप्त अन्तःकरणों को (परि, अर्षति) प्राप्त होता है, (त्री, सधस्था) कारण, सूक्ष्म और स्थूल तीनों शरीरों को (पुनानः) पवित्र करता हुआ (हरिः) वह अन्तःकरण के मल-विक्षेपादि दोषों को हरण करनेवाला परमात्मा (कृणुते) उपासक को पवित्र करता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो लोग अन्तःकरण के मल-विक्षेपादि दोषों को दूर करते हैं, वे लोग परमात्मज्ञान के अधिकारी बनकर परमात्मज्ञान का लाभ करते हैं ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
सधस्थता
पदार्थान्वयभाषाः - (वाराणि) = द्वेष का व विषयवासनाओं का निवारण जिनसे किया गया है, तथा (अव्यया) = जो विषयों में भटक नहीं रही ऐसी इन्द्रियों को (गोभिः अञ्जान:) = ज्ञान की वाणियों से अलंकृत करता हुआ यह सोम परि अर्षति शरीर में चारों ओर गतिवाला होता है। सुरक्षित सोम ज्ञान का वर्धक होता है । (हरिः) = यह सब मलों का हरण करनेवाला सोम (त्री) = तीनों-शरीर, मन व बुद्धि को (पुनानः) = पवित्र करता हुआ (सधस्था) = जीव परमात्मा को साथ-साथ ठहरनेवाला कृणुते करता है । पूर्ण परिशुद्धि होने पर जीव परमात्मा में स्थित होता है ये दोनों सधस्थ हो जाते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम हमें ज्ञान से अलंकृत करता है, पवित्र करता है, परमात्मा के साथ सहस्थिति को प्राप्त कराता है।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (गोभिः, अञ्जानः) अन्तःकरणवृत्तिभिः साक्षात्कृतः परमात्मा (अव्यया) स्वरक्षायुक्तशक्त्या (वाराणि) वरणार्हानि अन्तःकरणानि (पर्यर्षति) प्राप्नोति (त्री, सधस्था) कारणसूक्ष्मस्थूलात्मक- त्रिविधशरीराणि (पुनानः) पवित्रयन् (हरिः) अन्तःकरणस्य मलिवक्षेपादिदोषनाशकः (कृणुते) उपासकमपि पावयति ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - Pleased and exalted with songs of adoration, Soma, saviour spirit of bliss, radiates with its protective presence to the distinguished hearts and, purifying the body, mind and soul of the celebrants, blesses them in their physical, subtle and causal body states of existence.
