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स वी॒रो द॑क्ष॒साध॑नो॒ वि यस्त॒स्तम्भ॒ रोद॑सी । हरि॑: प॒वित्रे॑ अव्यत वे॒धा न योनि॑मा॒सद॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa vīro dakṣasādhano vi yas tastambha rodasī | hariḥ pavitre avyata vedhā na yonim āsadam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः । वी॒रः । द॒क्ष॒ऽसाध॑नः । वि । यः । त॒स्तम्भ॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । हरिः॑ । प॒वित्रे॑ । अ॒व्य॒त॒ । वे॒धाः । न । योनि॑म् । आ॒ऽसद॑म् ॥ ९.१०१.१५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:101» मन्त्र:15 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:3» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:15


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) पूर्वोक्त परमात्मा (वीरः) सर्वगुणसम्पन्न है, (दक्षसाधनः) सब चातुर्य्यादि बलों का देनेवाला है, (रोदसी) द्युलोक और पृथिवीलोक को (यः) जो (तस्तम्भ) सहारा दिये खड़ा है, वह (हरिः) सब दुर्गुणों को हनन करनेवाला परमात्मा (पवित्रे) पवित्र अन्तःकरण में विराजमान होकर (अव्यत) रक्षा करता है, (न) जैसे कि (वेधाः) यजमान (योनिम्) अपने यज्ञमण्डप में (आसदम्) स्थिर होता है, इसी प्रकार परमात्मा पवित्र अन्तःकरणों में ज्ञानगति से प्रविष्ट होकर उनको प्रकाशित करता है ॥१५॥
भावार्थभाषाः - जो लोग अपने अन्तःकरणों  को पवित्र बनाते हैं अर्थात् मन, बुद्धि आदिकों को शुद्ध करते हैं, उनके अन्तःकरणों में परमात्मा का आविर्भाव होता है ॥१५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दक्षसाधनः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) = वह सोम (वीरः) = विशेष रूप से शत्रुओं को कम्पित करनेवाला व (दक्षसाधनः) = बल व उन्नति का साधक होता है। यह सोम वह है, (यः) = जो (रोदसी) = द्यावापृथिवी को, मस्तिष्क व शरीर को (वि तस्तम्भ) = विशेष रूप से थामता है। शरीर को यही तेजस्वी बनाता है और मस्तिष्क को यही ज्ञानदीप्त करता है । (हरिः) = यह सब दुःखों का हरण करनेवाला सोम (पवित्रे) = पवित्र हृदय वाले पुरुष में अव्यत रक्षित होता है। वहां रक्षित हुआ हुआ यह (वेधाः न) = विधाता के समान शरीरस्थ सब शक्तियों का निर्माणकर्ता के समान होता हुआ (योनिम् आसदम्) = मूल उत्पत्ति स्थान प्रभु में आसीन होने के लिये होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- 'हृदय की पवित्रता' सोमरक्षण का साधन बनती है। यह सोम हमारे शत्रुओं को नष्ट करके हमें उन्नत करता है। यह हमारे मस्तिष्क व शरीर को ठीक करता है। सब वसुओं का निर्माण करता हुआ हमें अन्ततः प्रभु को प्राप्त कराता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) स परमात्मा (वीरः) सर्वगुणसम्पन्नः (दक्षसाधनः) चातुर्यादिबलानां प्रदाता च (यः) यश्च (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (तस्तम्भ) आधरति सः (हरिः) दुर्गुणानां हन्ता परमात्मा (पवित्रे) पूतेऽन्तःकरणे तिष्ठन् (अव्यत) रक्षति (न) यथा (वेधाः) यजमानः (योनिं) स्वयज्ञमण्डपम् (आसदं) आश्रयति एवं परमात्मा पूतान्तःकरणे  ज्ञानगत्या प्रविष्टस्तानि प्रकाशयति ॥१५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - That potent Soma, master controller of all powers, means and materials of success in existence, who sustains both heaven and earth, is the saviour power of protection and pervades the universe presiding as omniscient high priest over the vedi of cosmic yajna.