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सु॒ष्वा॒णासो॒ व्यद्रि॑भि॒श्चिता॑ना॒ गोरधि॑ त्व॒चि । इष॑म॒स्मभ्य॑म॒भित॒: सम॑स्वरन्वसु॒विद॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

suṣvāṇāso vy adribhiś citānā gor adhi tvaci | iṣam asmabhyam abhitaḥ sam asvaran vasuvidaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒स्वा॒णासः॑ । वि । अद्रि॑ऽभिः । चिता॑नाः । गोः । अधि॑ । त्व॒चि । इष॑म् । अ॒स्मभ्य॑म् । अ॒भितः॑ । सम् । अ॒स्व॒र॒न् । व॒सु॒ऽविदः॑ ॥ ९.१०१.११

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:101» मन्त्र:11 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:3» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:11


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (गोरधि त्वचि) अन्तःकरण में (अद्रिभिः) चित्तवृत्तियों द्वारा (चितानाः) ध्यान किये हुए (वि) विशेषरूप से (सुष्वाणासः) आविर्भाव को प्राप्त हुए उस परमात्मा के गुण (अस्मभ्यम्) हमको (अभितः) सर्व प्रकार से (इषम्) ऐश्वर्य्य (समस्वरन्) देते हैं और वे परमात्मा के ज्ञानादि गुण (वसुविदः) सब प्रकार के ज्ञानों के उत्पादक हैं ॥११॥
भावार्थभाषाः - यहाँ इन्द्रियों का अधिकरण जो मन है, उसका नाम अधित्वक् है, इस अभिप्राय से अधित्वचि के माने अन्तःकरण के हो सकते हैं। कई एक लोग इसके यह अर्थ करते हैं कि सोम कूटनेवाले अनडुह्-चर्म का नाम अधित्वक् है अर्थात् गोचर्म में सोम कूटने का यहाँ वर्णन है, यह अर्थ वेद के आशय से सर्वथा विरुद्ध है, क्योंकि ईश्वर के गुणवर्णन में गोचर्म का क्या काम ॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अभितः वसुविदः

पदार्थान्वयभाषाः - (अद्रिभिः) = उपासकों से [आदृ] (विसुष्वाणासः) = विशेष रूप से शरीर में प्रेरित किये जाते हुए ये सोमकण (गो:) = इस वेदवाणी रूप धेनु के (अधित्वचि) = आधिक्येन सम्पर्क में (चिताना:) = हमें संज्ञान युक्त करते हैं। सोमरक्षण से वेदधेनु का सम्पर्क हमारे साथ बढ़ता है और हमारा ज्ञान वृद्धि को प्राप्त करता है। ये (अभितः) = दोनों ओर ऐहलौकिक व पारलौकिक (वसुविदः) = ऐश्वर्य को प्राप्त करानेवाले सोमकण (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (इषम्) = अन्तः स्थित प्रभु की प्रेरणा को (सम् अश्वरन्) = सम्यक् उच्चारित करते हैं। हमें पवित्र हृदयवाला बनाकर प्रभु प्रेरणा के सुनने के योग्य बनाते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - अन्त: प्रेरित सोमकणों से बुद्धि की सूक्ष्मता होती है और हम अधिकाधिक ज्ञान के प्रकाश को प्राप्त करते हैं। ये हमें उभयलोक के ऐश्वर्यों को प्राप्त कराते हुए प्रभु प्रेरणा को सुनने का पात्र बनाते हैं ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (गोः, अधि, त्वचि) अन्तःकरणे (अद्रिभिः) चित्तवृत्तिभिः (चितानाः) ध्यानविषयाः सन्तः (वि) विशेषेण (सुष्वाणासः) आविर्भूताः परमात्मगुणाः (अस्मभ्यं) अस्मदर्थं (अभितः) सर्वतः (इषं) ऐश्वर्यं (सम् अस्वरन्) ददति अथ च ते गुणाः (वसुविदः) सर्वविधज्ञानस्योत्पादकाः ॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Reflective, inspiring and generative by controlled operations of higher mind in the purified heart core, let the Soma streams, vibrant and vocal, bring us spiritual energy, intelligential illumination and divine awareness all round in the world.