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पव॑स्व वाज॒सात॑मः प॒वित्रे॒ धार॑या सु॒तः । इन्द्रा॑य सोम॒ विष्ण॑वे दे॒वेभ्यो॒ मधु॑मत्तमः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pavasva vājasātamaḥ pavitre dhārayā sutaḥ | indrāya soma viṣṇave devebhyo madhumattamaḥ ||

पद पाठ

पव॑स्व । वा॒ज॒ऽसात॑मः । प॒वित्रे॑ । धार॑या । सु॒तः । इन्द्रा॑य । सो॒म॒ । विष्ण॑वे । दे॒वेभ्यः॑ । मधु॑मत्ऽतमः ॥ ९.१००.६

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:100» मन्त्र:6 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:28» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:6


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (वाजसातमः) सब प्रकार ऐश्वर्यों के देनेवाले आप (पवित्रे) पवित्र अन्तःकरण में (धारया) धारणारूप शक्ति से (सुतः) साक्षात्कार किये जाते हो। (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (इन्द्राय) कर्मयोगी के लिये (विष्णवे) ज्ञानयोगी के लिये (देवेभ्यः) अन्य विद्वानों के लिये (मधुमत्तमः) आप आनन्दमय हो ॥६॥
भावार्थभाषाः - वस्तुतः परमात्मा के ऐश्वर्य्य तथा विभूति के आनन्द को ज्ञानयोगी तथा कर्मयोगी ही भोगते हैं, अन्य नहीं ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वाजसातमः मधुमत्तमः

पदार्थान्वयभाषाः - हे सोम ! (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ तू (धारण) = अपनी धारण शक्ति के साथ (पवित्रे) = पवित्र हृदय वाले पुरुष में (वाजसातम:) = अतिशयेन शक्ति को देनेवाला होता हुआ (पवस्व) = प्राप्त हो । हे (सोम) = वीर्य ! तू (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये, (विष्णवे) = व्यापक मनोवृत्ति वाले [उदार हृदय] पुरुष के लिये तथा (देवेभ्यः) = देववृत्ति वाले पुरुषों के लिये (मधुमत्तमः) = अतिशयेन माधुर्य को प्राप्त करानेवाला हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - जितेन्द्रिय उदार हृदय दिव्य वृत्ति के पुरुष हृदय को पवित्र बनाकर सोम का रक्षण करते हैं। यह उन्हें शक्ति व माधुर्य को प्राप्त कराता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (वाजसातमः) सर्वविधैश्वर्यप्रदो भवान् (पवित्रे) पूतेऽन्तःकरणे (धारया) धारणाशक्त्या (सुतः) साक्षात्क्रियते (सोम) हे सर्वोत्पादक ! (इन्द्राय) कर्मयोगिने (विष्णवे) ज्ञानयोगिने (देवेभ्यः) अन्यविद्वद्भ्यश्च (मधुमत्तमः) आनन्दमयो भवान् ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma, all inspiring spirit of the universe, sweetest presence distilled and realised in the holy heart, flow on purifying by the stream of exhilaration, giving food, energy and fulfilment for the soul, for the universal vibrancy of nature and humanity, and for all the noble, generous and enlightened people.