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क्रत्वे॒ दक्षा॑य नः कवे॒ पव॑स्व सोम॒ धार॑या । इन्द्रा॑य॒ पात॑वे सु॒तो मि॒त्राय॒ वरु॑णाय च ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kratve dakṣāya naḥ kave pavasva soma dhārayā | indrāya pātave suto mitrāya varuṇāya ca ||

पद पाठ

क्रत्वे॑ । दक्षा॑य । नः॒ । क॒वे॒ । पव॑स्व । सो॒म॒ । धार॑या । इन्द्रा॑य । पात॑वे । सु॒तः । मि॒त्राय॑ । वरु॑णाय । च॒ ॥ ९.१००.५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:100» मन्त्र:5 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:27» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (कवे) हे सर्वज्ञ परमात्मन् ! (नः) हमारे (क्रत्वे) कर्म्मयोग के लिये (पवस्व) आप हमको पवित्र करें, (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (धारया) आप अपनी आनन्दमय वृष्टि से हमको पवित्र करें (च) और (इन्द्राय) कर्म्मयोगी की (पातवे) तृप्ति के लिये (मित्राय) अध्यापक और (वरुणाय) उपदेशक की तृप्ति के लिये आप (सुतः) उपासना किये जाते हो ॥५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा का साक्षात्कार कर्मयोगी अध्यापक तथा उपदेशक सबों की तृप्ति करता है ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

क्रत्वे दक्षाय

पदार्थान्वयभाषाः - हे (कवे) = क्रान्तदर्शिन् बुद्धि को सूक्ष्म बनानेवाले (सोम) = वीर्य ! तू (नः) = हमें क्रत्वे ' शक्ति प्रज्ञान व कर्म' के लिये तथा (दक्षाय) = सब प्रकार की उन्नति के लिये [दक्षू To grow] (धारया) = अपनी धारण शक्ति के साथ (पवस्व) = प्राप्त हो । हे सोम ! तू (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ (इन्द्राय पातवे) = इन्द्र के लिये जितेन्द्रिय पुरुष के लिये, पीने के योग्य होता है । (मित्राय) = सब के प्रति स्नेह वाले पुरुष के लिये होता है, (च) = और (वरुणाय) = द्वेष का निवारण करनेवाले पुरुष के लिये होता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम 'शक्ति प्रज्ञान कर्म व वृद्धि' का कारण बनता है। इसका रक्षण 'जितेन्द्रिय, सब के प्रति स्नेह वाला, निद्वैष' पुरुष ही कर पाता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (कवे) हे सर्वज्ञपरमात्मन् ! (नः) अस्माकं (क्रत्वे) कर्मयोगाय (दक्षाय) ज्ञानयोगाय च (पवस्व) मां पावयतु (सोम) हे सर्वोत्पादक ! (धारया) स्वानन्दवृष्ट्या च पवस्व (च) तथा (इन्द्राय) कर्मयोगिनः (पातवे) तृप्त्यै (मित्राय, वरुणाय) अध्यापकस्य उपदेष्टुश्च तृप्तये (सुतः) उपास्यते भवान् ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma, spirit of poetic omniscience, flow and purify us by streams of bliss distilled from experience and meditation for our intelligence, expertise and enlightenment, for fulfilment of Indra, man of power, Mitra, man of love, and Varuna, man of judgement.