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परि॑ ते जि॒ग्युषो॑ यथा॒ धारा॑ सु॒तस्य॑ धावति । रंह॑माणा॒ व्य१॒॑व्ययं॒ वारं॑ वा॒जीव॑ सान॒सिः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pari te jigyuṣo yathā dhārā sutasya dhāvati | raṁhamāṇā vy avyayaṁ vāraṁ vājīva sānasiḥ ||

पद पाठ

परि॑ । ते॒ । जि॒ग्युषः॑ । यथा॑ । धारा॑ । सु॒तस्य॑ । धा॒व॒ति॒ । रंह॑माणा । वि । अ॒व्यय॑म् । वार॑म् । वा॒जीऽइ॑व । सा॒न॒सिः ॥ ९.१००.४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:100» मन्त्र:4 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:27» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (सुतस्य) उपासना किये गए (ते) तुम्हारे आनन्द की (धारा) लहरें उपासक की ओर (परिधावति) इस प्रकार दौड़ती हैं, (यथा) जैसे कि (जिग्युषः) जयशील योद्धा का (वाजी, इव) घोड़ा शत्रु के दमन के लिये दौड़ता है, इसी प्रकार (रंहमाणा) वेगवती और (सानसिः) प्राप्त करने योग्य धारा (अव्ययं, वारं) रक्षायोग्य वरणीय पुरुष की अज्ञाननिवृत्ति के लिये इसी प्रकार दौड़ती हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा का साक्षात्कार करनेवाले ही परमात्मानन्द पाते हैं ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

परिधावति

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) = जैसे (जिग्युषः) = विजयशील योद्धा का (वाजी) = घोड़ा युद्ध में इधर-उधर दौड़ता है, उसी प्रकार हे सोम ! (सुतस्य) = उत्पन्न हुए हुए (ते) = तेरी (धारा) = धारा (परिधावति) = शरीर में चारों ओर शान्ति करती हुई शोधन करती है। (रंहमाणा) = गति करती हुई यह धारा (अव्ययम्) = [अवि अव्] विषयों में न भटकनेवाले (वारम्) = वासनाओं का निवारण करनेवाले पुरुष को प्राप्त होती है और यह जीवन संग्राम में (वाजी इव) = घोड़े की तरह (सानसिः) = संभजनीय होती है। घोड़ा जैसे युद्ध में विजय कराता है, इसी प्रकार यह सोम जीवन संग्राम में विजय का साधक होता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-सोम का जीवन संग्राम में यही स्थान है, जो युद्ध में एक विजेता योद्धा के लिये घोड़े का ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (सुतस्य) उपासितस्य (ते) तवानन्दस्य (धारा) वीचयः उपासकमभि (परि धावति) एवं सरन्ति (यथा) यथा (जिग्युषः) जयशीलयोधस्य (वाजी, इव) अश्वः शत्रुमभि (रंहमाणा) वेगवती (सानसिः) प्राप्तव्या च सा धारा (अव्ययं, वारं) रक्षणीयं वरणीयं च पुरुषमभि अज्ञाननिवृत्तयेऽपि एवमेव धावति ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - When you are distilled from experience and meditation, then the stream of your bliss, fast and ceaseless, flows to the chosen and protected heart of the devotee like the prize winning spirit of a victorious warrior.