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राजा॑नो॒ न प्रश॑स्तिभि॒: सोमा॑सो॒ गोभि॑रञ्जते । य॒ज्ञो न स॒प्त धा॒तृभि॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rājāno na praśastibhiḥ somāso gobhir añjate | yajño na sapta dhātṛbhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

राजा॑नः । न । प्रश॑स्तिऽभिः । सोमा॑सः । गोभिः॑ । अ॒ञ्ज॒ते॒ । य॒ज्ञः । न । स॒प्त । धा॒तृऽभिः॑ ॥ ९.१०.३

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:10» मन्त्र:3 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:34» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (राजानः, न)  राजाओं के समान (सोमासः) सौम्य स्वभाववाला परमात्मा (गोभिः) अपनी प्रकाशमय ज्योतियों से (अञ्जते) प्रकाशित होता है (यज्ञः, न) जिस प्रकार यज्ञ (सप्त, धातृभिः) ऋत्विगादि सात प्रकार के होताओं से सुशोभित होता है, इसी प्रकार परमात्मा प्रकृति की विकृति महदादि सात प्रकृतिओं से संसारावस्था में सुशोभित होता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - संसार भी एक यज्ञ है और इस यज्ञ के कार्यकारी ऋत्विगादि होता प्रकृति की शक्तियें हैं, जब परमात्मा इस बृहत् यज्ञ को करता है तो प्रकृति की शक्तियें उसमें ऋत्विगादि का काम करती हैं। इसी अभिप्राय से यह कथन किया है कि “तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः। तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये” यजुः ३१।९। उस पुरुषमेध यज्ञ को करते हुए ऋषि लोग सर्वद्रष्टा परमात्मा को अपना लक्ष्य बनाते हैं। इस प्रकार परमात्मा का इस मन्त्र में यज्ञरूप से वर्णन किया है। इसी अभिप्राय से “यज्ञो वै विष्णुः” शत० इत्यादि वाक्यों में परमात्मा को यज्ञ कथन किया है ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

ज्ञान की वाणियों द्वारा सोमकणों का शरीर में स्थापन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सोमासः) = सोमकण (गोभिः) = ज्ञान की वाणियों से (अञ्जते) = शरीर में अलंकृत किये जाते हैं [अज्यन्ते सा० ] (न) = जैसे कि (राजानः) = राजा लोग (प्रशस्तिभिः) = प्रशंसा की वाणियों से तथा (न) = जैसे कि (यज्ञः) = यज्ञ (सप्त) = सात (धातृभिः) = होताओं से अलंकृत किया जाता है । [२] जैसे राजाओं की प्रशस्तियाँ की जाती हैं, इसी प्रकार इन सोमकणों की भी प्रशंसा होती है। जैसे यज्ञ सात होताओं द्वारा प्रणीत होता है, इसी प्रकार यह सोम शरीर में 'कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम् ' इन सात के संयम से सुरक्षित होता है । [३] 'शस्' धातु हिंसार्थक भी है । राजाओं का अलंकार यही है कि वे खूब ही शत्रुओं का शसन [हिंसन] करें। सोम भी शरीर में रोगकृमिरूप शत्रुओं का हिंसन करता है । इसी प्रकार यज्ञ जैसे सात होताओं द्वारा अलंकृत किया जाता है, यह सोम भी सात छन्दोंवाली इन ज्ञान की वाणियों से शरीर में अलंकृत किया जाता है। मनुष्य जब इन वाणियों में रुचिवाला बनता है तो वह वासनाओं से बचा रहता है। इस प्रकार ये सोमकण शरीर में ही सुरक्षित रहते हैं और शरीर को श्री - सम्पन्न बनाते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोमकण शरीर को अलंकृत करनेवाले होते हैं। इनकी सुरक्षा के लिये आवश्यक है कि हम ज्ञान की वाणियों की ओर झुकाववाले बने रहें ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (राजानः, न) नृपा इव (सोमासः) सौम्यस्वभाववान् परमात्मा (गोभिः) स्वप्रकाशमयज्योतिभिः (अञ्जते) प्रकाशते (यज्ञः, न) यथा यज्ञः (सप्त, धातृभिः) सप्तविधहोतृभिर्विराजते तथावत् परमात्मापि प्रकृतिविकृतिरूपमहदादिसप्तप्रकृतिभिः संसारावस्थायां द्योतत इत्यर्थः ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Like kings celebrated by songs of praise, like yajna beautified by seven priests, the soma seekers are hallowed by songs of praise as soma is energised by sun-rays.