वांछित मन्त्र चुनें

त्वामि॒दा ह्यो नरोऽपी॑प्यन्वज्रि॒न्भूर्ण॑यः । स इ॑न्द्र॒ स्तोम॑वाहसामि॒ह श्रु॒ध्युप॒ स्वस॑र॒मा ग॑हि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvām idā hyo naro pīpyan vajrin bhūrṇayaḥ | sa indra stomavāhasām iha śrudhy upa svasaram ā gahi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वाम् । इ॒दा । ह्यः । नरः॑ । अपी॑प्यन् । व॒ज्रि॒न् । भूर्ण॑यः । सः । इ॒न्द्र॒ । स्तोम॑ऽवाहसाम् । इ॒ह । श्रु॒धि॒ । उप॑ । स्वस॑रम् । आ । ग॒हि॒ ॥ ८.९९.१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:99» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:3» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:10» मन्त्र:1


0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

भूर्णयः नरः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (वज्रिन्) = वज्रहस्त - क्रियाशीलता रूप वज्र को हाथ में लिये हुए प्रभो ! (त्वाम्) = आपको (ह्यः) = बल, अर्थात् गत समय में तथा इव - [ इदानीम् ] अब भी ये (भूर्णयः) = भरणात्मक कर्मों में प्रवृत्त (नरः) = उन्नतिपथ पर चलनेवाले लोग (अपीप्यन्) = स्तुतियों के द्वारा बढ़ाते हैं। [२] हे (इन्द्र) = शत्रु - विद्रावक प्रभो ! (सः) = वे आप (इह) = यहाँ (स्तोमवाहसाम्) = स्तुति-समूहों का वहन करनेवाले इन उपासकों के स्तोत्र को (श्रुधि) = सुनिये। (स्व सरम्) = आत्मतत्व की ओर चलनेवाले इस उपासक को उप (आ गहि) = समीपता से प्राप्त होइये। नि० ३.४ में 'स्वसरम्' गृह का नाम है। तब अर्थ इस प्रकार होगा कि (स्वसरं उपागहि) = हमारे घर में प्राप्त होइये।
भावार्थभाषाः - भावार्थ भरणात्मक कर्मों में प्रवृत्त होकर हम प्रभु का उपासन करें। हम स्तोताओं की प्रार्थना को प्रभु सुने और हमें प्राप्त हो।
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, lord of mind and soul, wielder of adamantine will and energy, zealous celebrants and leading lights serve and adore you today as ever before in the past. Thus adored and contemplated, listen to the prayers of the devotees in meditation, come and arise in your own abode of the sage’s heart.