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देवता: इन्द्र: ऋषि: नृमेधः छन्द: उष्णिक् स्वर: ऋषभः

इन्द्रा॑य॒ साम॑ गायत॒ विप्रा॑य बृह॒ते बृ॒हत् । ध॒र्म॒कृते॑ विप॒श्चिते॑ पन॒स्यवे॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrāya sāma gāyata viprāya bṛhate bṛhat | dharmakṛte vipaścite panasyave ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्रा॑य । साम॑ । गा॒य॒त॒ । विप्रा॑य । बृ॒ह॒ते । बृ॒हत् । ध॒र्म॒ऽकृते॑ । वि॒पः॒ऽचिते॑ । प॒न॒स्यवे॑ ॥ ८.९८.१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:98» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:1» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:10» मन्त्र:1


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'इन्द्र विप्र बृहत्, धर्मकृत् विपश्वित् पनस्यु'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (इन्द्राय) = परमैश्वर्यशाली प्रभु के लिये (साम गायत) = साम [स्तोत्र ] का गायन करो। (विप्राय) = ज्ञानी, (बृहते) = महान् प्रभु के लिये बृहत् खूब ही साम का गायन करो। [२] उस प्रभु के लिये गायन करो, जो (धर्मकृते) = धारणात्मक कर्मों को करनेवाले हैं। (विपश्चिते) = ज्ञानी हैं और (पनस्यवे) = स्तुति को चाहनेवाले हैं। जीव को इस स्तुति के द्वारा ही अपने लक्ष्य का स्मरण होता है। यह लक्ष्य का अविस्मरण उसकी प्रगति का साधन बनता है। इसीलिए प्रभु यह चाहते हैं, कि जीव का जीवन स्तुतिमय हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम प्रभु का स्तवन करें। प्रभु के समान ही इन्द्र [ जितेन्द्रिय] बृहत् [वृद्धिवाले] विप्र [अपना पूरण करनेवाले] धर्मकृत् [धर्म के कार्य करनेवाले] विपश्चित् [ज्ञानी] व स्तुतिमय [पनस्यु] बनें।
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Sing Brhatsama hymns in adoration of Indra, vibrant spirit of the universe and giver of fulfilment, grand and infinite, source ordainer and keeper of the law of universal Dharma, giver and protector of knowledge and karma, the lord adorable.