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तन्म॑ ऋ॒तमि॑न्द्र शूर चित्र पात्व॒पो न व॑ज्रिन्दुरि॒ताति॑ पर्षि॒ भूरि॑ । क॒दा न॑ इन्द्र रा॒य आ द॑शस्येर्वि॒श्वप्स्न्य॑स्य स्पृह॒याय्य॑स्य राजन् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tan ma ṛtam indra śūra citra pātv apo na vajrin duritāti parṣi bhūri | kadā na indra rāya ā daśasyer viśvapsnyasya spṛhayāyyasya rājan ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत् । मा॒ । ऋ॒तम् । इ॒न्द्र॒ । शू॒र॒ । चि॒त्र॒ । पा॒तु॒ । अ॒पः । न । व॒ज्रि॒न् । दुः॒ऽइ॒ता । अति॑ । प॒र्षि॒ । भूरि॑ । क॒दा । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । रा॒यः । आ । द॒श॒स्येः॒ । वि॒श्वऽप्स्न्य॑स्य । स्पृ॒ह॒याय्य॑स्य । रा॒ज॒न् ॥ ८.९७.१५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:97» मन्त्र:15 | अष्टक:6» अध्याय:6» वर्ग:38» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:10» मन्त्र:15


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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सत्य-निष्पापता-धन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (शूर) = शत्रुओं को शीर्ण करनेवाले, (चित्र) = आश्चर्यमय अथवा [चित्] ज्ञान-प्रदात:, (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन् प्रभो ! (मे) = मुझे (तत्) = वह (ऋते) = ऋत [सत्य] (पातु) = रक्षित करे। हे (वज्रिन्) = वज्रहस्त प्रभो! आप हमें सब (दुरिता) = पापों के (भूरि) = खूब ही (अतिपर्षि) = इस प्रकार पार करिये, (न) = जैसे एक नाविक (अपः) = यात्री को जलों के पार करता है। [२] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् (राजन्) = शासक प्रभो! आप (कदा) = कब (नः) = हमारे लिये (विश्वप्स्न्यस्य) = स्पृहणीय (रायः) = धन को आदशस्ये देंगे? कब हम आप से इस धन को प्राप्त करेंगे ?
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सत्य हमारा रक्षण करे। प्रभु हमें पापों से पार करें और स्पृहणीय अनेकरूप धन को प्राप्त करायें। यह सुपथ से चलनेवाला सत्यवादी 'नृ-मेध' बनता है, सब मनुष्यों के साथ मेल से चलता है । यह इन्द्र का स्तवन करता है-
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, wondrous hero of universal might, may the constant and ever true divine law of existence, Rtam, protect me and guide me along the paths of rectitude. O lord of the thunderbolt of justice and karma, Indra, like my karmas, cleanse my mind and soul of all sins and evil. Indra, refulgent ruler of the world, when would you bless me with wealth, honour and excellence of universal form and most cherished value?